ग़ज़लें--- अखतर शीरानी

बुधवार, 21 मई 2008 (15:58 IST)
RajashriWD
दिल में 'ख्याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना' आ गया------(महबूब की आँखों का ख्याल)
फूलों से खेलता हुआ दीवाना आ गया

बादल के उठते ही 'म-ओ-पैमाना' आ गया----------(शराब और प्याला या ग्लास)
बिजली के साथ साथ 'परीखाना' आ गया----------(परियों का घर)

मस्तों ने इस अदा से किया 'रक़्स-ए-नौबहार'------(नई बहार आने की खुशी में नाच)
पैमाना क्या कि 'वज्द' में मैखाना आ गया--------(नशे की हालत में)

उस 'चश्म-ए-मौफ़रोश की तासीर' क्या कहूँ-----(शराब बेचने वाली आँख का प्रभाव)
आँखों तक आज आप ही पैमाना आ गया

मालूम किस को 'क़ैस' की दीवानगी की शान------(मजनू)
हंगामा सा बपा है कि दीवाना आ गया

अख्तर ग़ज़ब थी 'एह्द-ए-जवानी की दास्ताँ' -----( जवानी के समय की कहानी)
आँखों के आगे एक परीखाना आ गया

2. झूम कर उठ्ठी है फिर 'कोहसार' से काली घटा------(परबत)
कैसी मस्ताना घटा है, कितनी मतवाली घटा

देखना कैसा ये बरखा रुत ने जादू कर दिया
हर कली बिजली बनी है और हर डाली घटा

'सबज़ा-ओ-गुल' झूमते हैं, 'दश्त-ओ-गुलशन' मस्त हैं----( हरयाली और फूल),-----(जंगल और बाग़ बग़ीचे)
मैकदे बरसा रही है, होके मतवाली घटा

छाई है किस धूम से 'गुलज़ार-ओ-कोह-ओ-दश्त' पर-----(बाग़ और परबत और जंगल)
आह ये पहली घटा, रंगीं घटा, काली घटा

उनकी 'ज़ुल्फ़-ए-मुश्क्बू' की बू चुरा कर लाई है------(महकती हुई ज़ुल्फ़)
वरना क्यों आती है इतराती हुई काली घटा

'सब्ज़' मखमल सी बिछी जाती है 'फ़र्श-ए-खाक' पर-----(हरी),-----(धरती का बिछौना)
हर तरफ़ लहरा रही है कैसी हरयाली घटा

दिल से आती हैं 'सदाएं','बेखुदी-ए-शौक़ में'-------(आवाज़ें),-----(इश्क़ के नशे में)
मेरे सीने में समा जाए ये मतवाली घटा

उनको भी 'हमराह' ले आती तो कोई बात थी------(साथ में)
वरना अख्तर सच ये है किस काम की काली घटा

3. न छेड़ 'ज़ाहिद-ए-नादाँ'-शराब पीने दे-----(धार्मिक उपदेश देने वाले नासमझ)
शराब पीने दे, 'खानाखराब' पीने दे-------(बुरा आदमी-जिस का घर बदनाम हो)

अभी से अपनी नसीहत का 'ज़हर' दे न मुझे-----
अभी तो पीने दे और बेहिसाब पीने दे

मैं जानता हूँ छलकता हुआ गुनाह है ये
तो इस गुनाह को 'बेएहतिसाब' पीने दे------(बिना हिसाब किए)

फिर ऎसा वक़्त कहाँ, हम कहाँ, शराब कहाँ
'तिलिस्म-ए-देह्र' है 'नक़्श-ए-बरआब' पीने दे-----(दुनिया का जादू),----(पानी के ऊपर का रंग)

मेरे दिमाग़ की दुनिया का 'आफ़ताब' है ये------(सूरज)
मिला के बर्फ़ में ये आफ़ताब पीने दे

किसी हसीना के बोसों के क़ाबिल अब न रहे------(चुंबन)
तो इन लबों से हमेशा शराब पीने दे

समझ के उसको 'ग़फ़ूरुर रहीम' पीता हूँ-------(सब पर हमेशा रहम करने वाला)
न छेड़ 'ज़िक्र-ए-अज़ाब-ओ-सवाब' पीने दे------(पाप और पुण्य की)

जो रूह हो चुकी इक बार दाग़दार मेरी
तो और होने दे लेकिन शराब पीने दे

शराबखाने में ये शोर क्यों मचाया है
ख़मोश अख्तर-ए-खानाखराब पीने दे

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