उलटी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारि-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
क्यों बुरा कहते हो भला नासेह
मैंने हज़रत से क्या बुराई की
ग़म से कहाँ ऎ इश्क़ मफ़र है
रात कटी तो सुबहा का डर है
मैं तो समझ गया मेरे क़ातिल की आरज़ू
ऎ काश वो समझ ले मेरे दिल की आरज़ू
गरदिश-ए-वक़्त के तूफ़ान से हारा तो नहीं
मैंने मुश्किल में किसी को भी पुकारा तो नहीं
क्या कहें तुम से के हम हिज्र* में क्या करते हैं-------जुदाई
याद इक भूलने वाले को किया करते हैं
मैं बेअदब हुआ कि वफ़ा में कमी हुई होंटों पे क्यों है 'मोहरेख़मोशी' लगी हुई---चुप रहने की मोहर
चश्म-ए-गुल्चीं में ख़ार हैं हम लोग
फिर भी जान-ए-बहार हैं हम लोग
किस किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा
आज़ाद हो चुके थे, बन्दा बना के मारा
ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ! मेरी आँख नम नहीं
अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का
साज़-ए-दिल* जब सदा नहीं देता-------- दिल का बाजा (साज़)
कोई नग़मा* मज़ा नहीं देता---------गीत
ऎ वली सर्व क़द कूँ देखूँगा
वक़्त आया है सरफ़राज़ी