हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अन्दाज़े-ग़ुफ़्तगू क्या है न शोले में ये करिश्मा, न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोख़े-तुन्द-ख़ू क्या है चिपक रहा है बदन पे लहू से पैराहन हमारी जेब को अब हाजते-रफ़ू क्या है जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आंख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है रही न ताक़ते-गुफ़्तार और अगर हो भी, तो किस उम्मीद से कहिए कि आर्ज़ू क्या है हुआ है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता वगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है - मिर्जा़ ग़ालिब