शाद अज़ीमाबादी

शनिवार, 9 अगस्त 2008
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ , खिलौने दे के बहलाया गया हूँ

ग़ज़लें : सैफ़ुद्दीन सैफ़

बुधवार, 6 अगस्त 2008
क़रीब मौत खड़ी है, ज़रा ठहर जाओ क़ज़ा से आँख लड़ी है, ज़रा ठहर जाओ

ग़ज़लें : अख़्तर शीरानी

बुधवार, 6 अगस्त 2008
दिल में 'ख़्याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना' आ गया फूलों से खेलता हुआ दीवाना आ गया
मैं बे अदब हुआ कि वफ़ा में कमी हुई , होठों पे क्यों है 'मोहरेख़मोशी'लगी हुई
कहते हैं जिसे अब्र वो मैखाना है मेरा , जो फूल खिला बाग़ में पैमाना है मेरा
है दिल को शौक़ उस बुत-ए-क़ातिल की दीद का होली का रंग जिस को लहू है शहीद का
'हाली' निशात-ए-नग़मा-ओ-मय ढूंडते हो अब आए हो वक़्त-ए-सुबह रहे रात भर कहाँ
है मेरा हर्फ़-ए-तमन्ना, तेरी नज़र का क़ुसूर तेरी नज़र ने ही ये हौसला दिया था मुझे

आतिश (ख्वाजा हैदर अली) की ग़ज़ल

मंगलवार, 22 जुलाई 2008
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या केहती है तुझ को खल्क़-ए-खुदा ग़ाएबाना क्या

ग़ज़ल : बेखुद देहलवी

मंगलवार, 22 जुलाई 2008
वो सुनकर हूर की तारीफ़, परदे से निकल आए कहा फिर मुस्कुराकर, हुस्न-ए-ज़ेबा इस को कहते हैं
आ रहे हैं मुझको समझाने बहुत , अक़्ल वाले कम हैं दीवाने बहुत

ग़ज़ल----फि़जा इब्न फ़ैज़ी

शनिवार, 12 जुलाई 2008
दिलनशीं ज़ुल्फ़ का आहंग लगे, हर अंधेरा मुझे गुल रंग लगे...

ग़ज़ल-- बेखुद देहलवी

शनिवार, 12 जुलाई 2008
वो सुनकर हूर की तारीफ़, परदे से निकल आए कहा फिर मुस्कुराकर, हुस्न-ए-ज़ेबा इसको कहते हैं
वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे , मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे
यही है खाक नशीनों की ज़िन्दगी की दलील क़ज़ा से दूर है ज़र्रों का इंकिसारे जमील

मोमिन की ग़ज़लें

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

मोमिन की ग़ज़ल

मंगलवार, 8 जुलाई 2008
वो जो हम में तुम में क़रार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो क