नई शायरी

बिगड़ते रिश्तों को फिर से बहाल मत करना, जो टूट जाएँ तो उनका ख़याल मत करना।
तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको , रोकना पड़ता है पलकों से समंदर मुझको ...
जो हुक्म देता है वो इल्तिजा भी करता है, ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है ...
चहचहाकर सारे पंछी उड़ गए वार जब सैयाद का खाली गया
फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में, घर ख़रीदा हो जैसे क़िश्तों में...
कभी यक़ीन का यूँ रास्ता नहीं बदला बदल गए हैं ज़माने ख़ुदा नहीं बदला
बेख़्याली का बड़ा हाथ है रुसवाई में आप से बात करेंगे कभी तन्हाई में
उदास शहर में जब जब भी हँसी आती है किसी ग़रीब के चहरे पे चिपक जाती है
मुर्ग़, माही, कबाब ज़िन्दाबाद हर सनद हर ख़िताब ज़िन्दाबाद