नई शायरी

वैसे तो रोशनी के लिए क्या नहीं किया लेकिन किसी चिराग़ पे क़ब्ज़ा नहीं किया किस दिन हमें मिला न पयाम...
खिजा ने लूट ली, जब से बहार की सूरत रही न बाकी गुलों में करार की सूरत

गजल : जाकिर उस्मानी

बुधवार, 9 अप्रैल 2008
घर की चिंता करते हैं दफ्तर में भी संसारी लोग। बात के कितने हलके हैं ये पत्थर से भी भारी लोग॥

गजलें - रहीम रजा

बुधवार, 9 अप्रैल 2008
वह जालीम है इनायत क्या करेंगे भलाई की हिमायत क्या करेंगे