साक़ी इन्दौरी

1.
WD
सदा ए साज़ भी दस्त ए हुनर की क़ैद में ह
हमारा सोज़ ए जिगर नोहागर की क़ैद में ह

वो नग़मगी ए मोहब्बत जिसे कहा जा
किसी की ख़ास अदा के असर की क़ैद में ह

महक गुलों के लिए आम था ज़माने मे
वो अब ख़ुलूस ए बशर भी बशर की क़ैद में ह

हिसार तोड़ दे इक पल में मेरे पैकर क
मगर ये साँस तो शाम ओ सहर की क़ैद में ह

मैं कैसे उसकी रिहाई का फ़ैसला कर दू
मेरी हयात का हासिल नज़र की क़ैद में ह

जो आफ़ताब जला देना चाहता था मुझ
किरन किरन मेरे बूढ़े शजर की क़ैद में ह

फ़राख़ दिल तो है रिन्दो तुम्हारा ये साक़
वो इन दिनों कई एहले हुनर की क़ैद में है

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2.
दराज़ राहे सफ़र क्यूँ तलाश करता है
हुनर में रंगे हुनर क्यूँ तलाश करता ह

अँधेरी शब में सहर क्यूँ तलाश करता ह
वो जुगनूओं का नगर क्यूँ तलाश करता ह

वो जिसकी तूने कभी फ़िक्रे आबोगिल ही न क
अब उस शजर में समर क्यूँ तलाश करता ह

इसे ये शौक़ किसी रोज़ मार डालेग
ये दिल नमक में शकर क्यूँ तलाश करता ह

है उसके शिजरे में इक भीड़ आफ़ताबों क
वो सायादार शजर क्यूँ तलाश करता है

मैं सारे दश्त को पैरों से रौंदने वाल
पता नहीं मुझे घर क्यूँ तलाश करता ह

कहीं मिलेगा तो पूछूँगा चाँद से साक़
वो मेरे ज़ख़्मे जिगर क्यूँ तलाश करता।
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