मेरठ की ग्रामीण महिलाएं बनीं समाज में बदलाव की मिसाल

हिमा अग्रवाल

बुधवार, 17 सितम्बर 2025 (18:24 IST)
High tech nursery by Rural women: हम होंगे कामयाब एक दिन, हो मन में है विश्वास... यह सकारात्मक सोच अपने आप रास्ते बना देती है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में ऐसा ही कुछ कर दिखाया है छोटे से गांव मछरी की रीना मलिक ने। उन्होंने सरकार की कल्याणकारी योजना स्वयं सहायता समूह के जरिए गांव की दस महिलाओं की टीम तैयार की और आत्मनिर्भरता की राह पर चल पड़ी।
 
दौराला ब्लॉक के मछरी गांव की रीना मलिक और उनके साथ जुड़ी दस साधारण महिलाओं ने यह बात पूरी तरह सिद्ध कर दी कि 'अगर इरादे मजबूत हों और सोच नई हो, तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं।' ग्रामीण परिवेश में पली बड़ी और घर तक सीमित रहने वाली ये महिलाएं आज गांव में हाइटेक नर्सरी चलाकर न सिर्फ आत्मनिर्भर बन गई हैं, बल्कि इलाके की आर्थिक और सामाजिक तस्वीर भी बदल दी है।
 
कुछ करने की इच्छा मन में थी : रीना बताती हैं कि शादी के बाद कुछ करने की इच्छा मन में लिए थी, बच्चों की अच्छी परवरिश, पति की मदद और घर-समाज में अपने अस्तित्व को एक पहचान देने की इच्छा थी, जिसके चलते उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से डीएवाई-एनआरएलएम योजना ग्रामीण के तहत दुर्गा शक्ति स्वयं सहायता समूह का गठन किया। शुरुआत में इस समूह के पास संसाधन नहीं थे, पर हिम्मत और हौसला था। प्रशिक्षण के बाद जब उद्यान विभाग ने गांव की खाली पड़ी सरकारी जमीन पर नर्सरी की योजना बनाई, तो रीना और उनकी टीम ने इसका जिम्मा उठाया और दिसंबर 2023 से उन्होंने हाईटेक नर्सरी को चलाना शुरू किया। ग्रामीण लोगों की संकीर्ण सोच को पीछे छोड़ते हुए समूह की महिलाओं ने मेहनत और लगन के बल पर सबकी सोच बदल दी।
 
मिट्टी नहीं, तकनीक से उपजा आत्मविश्वास : इस नर्सरी में पारंपरिक मिट्टी की जगह कोकोपीट, पर्लाइट और वर्मिकुलाइट के मिश्रण का उपयोग किया जाता है, जिससे 100% प्राकृतिक और रोग-मुक्त पौधे तैयार होते हैं। इससे उत्पादन भी बेहतर होता है और किसानों का भरोसा भी बढ़ा है।
 
अब तक ये महिलाएं 6 लाख से अधिक पौधे किसानों को उपलब्ध करा चुकी हैं। टमाटर, मिर्च, बैंगन, शिमला मिर्च, करेला, तरबूज, पपीता और गुलाब, गेंदा से लेकर गुलदावदी तक, यहां लगभग 30 से ज्यादा किस्मों के पौधे तैयार होते हैं। यह समूह दो तरीके से पौध तैयार करता है, एक तो किसानों से बीज लेकर पौधे तैयार करने पर प्रति पौधा 1 रुपया मिलता है, जबकि दूसरा स्वयं बीज लाकर पौधे तैयार करने पर 2-4 रुपए से अधिक तक की आमदनी होती है। अब तक ये महिलाएं 6 लाख से अधिक पौधे किसानों को दे चुकी हैं, जिससे लाखों की आमदनी हो चुकी है। नर्सरी से जुड़ी महिलाएं खेती योग्य जमीन पर अब परंपरागत गन्ने की जगह सब्जियां और फूल उगाने लगी हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा हो रहा है। वे कृषि मेलों, प्रदर्शनों और सरकारी आयोजनों में भाग लेकर अपने उत्पादों की बिक्री करती हैं।
बदलाव की मिसाल बनीं महिलाएं : प्रियंका, जो पहले एक हाउसवाइफ थीं, आज खुद खर्च चला रही हैं। कृष्णा, जिन्हें पहले मजदूरी करनी पड़ती थी, अब नर्सरी में काम करके सम्मान और आमदनी दोनों कमा रही हैं। अनीता बताती हैं कि अब परिवार की आर्थिक हालत सुधर गई है और जीवन में आत्मविश्वास आ गया है। रीना बताती हैं कि पहले छोटी चीजों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब हम निर्णय लेते हैं, योजनाएं बनाते हैं और आगे बढ़ते हैं। लोग अब हमें 'हाइटेक नर्सरी वाली दीदी' कहकर पहचानते हैं।
 
सरकारी सहयोग और भरोसा : उद्यान विभाग के उपनिदेशक डॉ. विनीत कुमार बताते हैं कि सरकार की मंशा है कि ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और किसानों को गुणवत्ता वाले पौधे मिलें। नर्सरी की कमाई का 20% हिस्सा विभाग को रखरखाव के लिए जाता है, शेष समूह की महिलाएं आपस में बांटती हैं। जिला उद्यान अधिकारी अरुण कुमार के अनुसार, इस नर्सरी में बिना मिट्टी के तकनीक से तैयार किए जा रहे पौधे बीमारियों से मुक्त और बेहतर गुणवत्ता वाले हैं। इससे किसानों की पैदावार भी बढ़ी है और महिलाएं भी आर्थिक रूप से सशक्त हुई हैं। (मछरी गांव मेरठ से विशेष रिपोर्ट) 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 

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