राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए बगावत पर उतारू नेता

रुद्रपुर। ऊधमसिंह नगर में भले ही भाजपा ने कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया हो, मगर ऊधमसिंह नगर में भाजपा के सामने अपनों को थामना किसी चुनौती से कम नहीं है। जिले की कई सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बगावती तेवर सामने आ गए हैं।     
कई सीटों पर भाजपा के विद्रोहियों ने अपने सियासी करियर को बचाने के लिए नामांकन कराने का दावा कर दिया है। ऐसे में भाजपा नेता अपनों को मना पाएंगे अथवा नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा। अगर भाजपा इन्हें न मना पाई तो भाजपा के प्रत्याशियों को नुकसान होना तय है।
          
जसपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा में अंदरुनी चिंगारी तो तभी से भड़की हुई है जब से भाजपा ने डॉ. शैलेंद्र मोहन सिंघल को भाजपा में शामिल किया है। इसके बाद पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे आदेश चौहान ने समर्थकों के साथ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। अब भाजपा ने डॉ. सिंघल को प्रत्याशी घोषित किया तो भाजपा से टिकट की आस लगाए बैठी सीमा चौहान ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दावेदारी की।
        
काशीपुर में भाजपा ने हरभजन सिंह चीमा को प्रत्याशी घोषित किया है तो लंबे समय से टिकट की आस लगाए बैठे पूर्व विधायक राजीव अग्रवाल का धैर्य दम तोड़ता दिखा। दरअसल, वेकाशीपुर से भाजपा के विधायक रह चुके हैं। पूर्व में भाजपा का अकाली दल से गठबंधन हुआ था तब काशीपुर सीट अकाली दल के खाते में चली गई थी।
 
अब लगातार तीसरी बार चीमा को टिकट मिलने पर राजीव अग्रवाल को अपना राजनीतिक करियर बनाए रखने के लिए कोई कदम उठाना जरूरी हो गया था। शायद यही वजह है कि अग्रवाल ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन कराने का ऐलान कर दिया।
         
इससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। भाजपा नेत्री सुनीता टम्टा बाजवा ने तो भाजपा छोड़कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। अभी भाजपा के कुछ और कार्यकर्ता भी बगावत कर सकते हैं, ऐसी खबरें आ रही हैं। गदरपुर विधानसभा सीट पर भाजपा नेता रवींद्र बजाज ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन कराने का ऐलान कर दिया है।
           
सितारगंज विधानसभा क्षेत्र में सौरभ बहुगुणा ने काफी हद तक भाजपा कार्यकर्ताओं से समन्वय बना लिया है, लेकिन टिकट की दावेदारी कर रहे कुछ नेता अभी चुप्पी साधे बैठे हैं। उनकी चुप्पी क्या गुल खिलाएगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। 
 
बहरहाल, बगावत करने वाले नेताओं के सामने अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता है तो भाजपा नेताओं के सामने डैमेज कंट्रोल की चुनौती। असली स्थिति तो नामांकन वापसी के बाद ही साफ हो पाएगी। (वार्ता)

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