वास्तु, शयनकक्ष और स्वास्थ्य

- आशा 'अपूर्वा'

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वास्तु में शैया का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग शयनकक्ष में ही बिताता है। योगशास्त्र में भी निद्रा की अवधि और अवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरीय चार अवस्थाएँ बताई गई हैं।

वास्तुशास्त्र में शैया के लिए लकड़ी के स्पष्ट निर्देश हैं कि वृक्ष की आयु का परीक्षण करके ही उसका प्रयोग करना चाहिए। दक्षिण भारत के ग्रंथों में शैया के लिए चंदन का प्रयोग भी उचित ठहराया गया है।

शैया की माप के बारे में विधान है कि शैया की लंबाई सोने वाले व्यक्ति की लंबाई से कुछ अधिक होना चाहिए। पलंग में लगा शीशा वास्तु की दृष्टि से दोष है, क्योंकि शयनकर्ता को शयन के समय अपना प्रतिबिम्ब नजर आना उसकी आयु क्षीण करने के अलावा दीर्घ रोग को जन्म देने वाला होता है।
  वास्तु में शैया का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग शयनकक्ष में ही बिताता है। योगशास्त्र में भी निद्रा की अवधि और अवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरीय चार अवस्थाएँ बताई गई हैं।      


शयनकक्ष और स्वास्थ्य
भवन या प्लॉट के चारों कोनों को आपस में रेखाओं से मिलाने पर गुणा के आकार की दो रेखाओं पर पड़ने वाला सारा क्षेत्र वस्तु का अंश या रीढ़ है। इन मर्म स्थानों पर भूतल या किसी भी फ्लोर पर छत से गुजरता हुआ कोई खंभा, बीम, लोहे का शहतीर, सेप्टिक टैंक,सीवेज लाइन हो तो घर में असाध्य रोगों का प्रवेश हो जाता है। बेड को कोने में दीवार से सटाकर बिलकुल न रखें। कमरे में दर्पण को कुछ इस तरह रखें, जिससे लेटी अवस्था में आपका प्रतिबिम्ब उस पर न पड़े।

* फ्रिज कभी भी बेडरूम में न हो।

* शयनकक्ष में साइड टेबल पर दवाई रखने का स्थान न हो। अनिवार्य दवाई को भी सुबह वहाँ से हटाकर अन्यत्र रख दें।

* कमरे में सामान ठूँसकर न भरें।