त्रिशूल, डमरू और ॐ सहित ये 10 शिव प्रतीक दूर करते हैं वास्तु दोष
सोमवार, 28 फ़रवरी 2022 (11:32 IST)
महाशिवरात्रि शिवरात्रि 2022: भगवान शिव से जुड़ा हर एक प्रतीक महत्वपूर्ण है। इन प्रतीक चिन्हों के घर में होने से वास्तु दोष दूर होता है और नकारात्मक शक्तियां भी दूर होती है। इन प्रतीक चिन्हों के कई गहरे आध्यात्मिक अर्थ भी है। आओ जानते हैं ऐसे कौनसे 10 शिव प्रतीक हैं जिससे दूर होते हैं वास्तु दोष।
1. डमरू : भगवान शिव के पास डमरू अनाहत नाद का प्रतीक है। डमरू से समाधि लगती है और टूटती भी है। यह घर की नकारात्मक ऊर्जा और शक्तियों को दूर करता है।
2. त्रिशूल : भगवान शिव के पास हमेशा एक त्रिशूल ही होता है। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक भी है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम, उदय, संरक्षण और लयीभूत, पशुपति, पशु एवं पाश, स्वपिंड, ब्रह्मांड और शक्ति, इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ियां सहित यह महाकालेश्वर के 3 कालों वर्तमान, भूत, भविष्य का प्रतीक भी है। त्रिशूल घर को भूत, प्रेत और बुरी नजर से बचाता है। इसे लॉकेट के रूप में भी धार करते हैं।
3. गंगा : शिवजी गंगा को जटा में धारण करते हैं। घर में गंगाजल रखने से पवित्रता और शांति स्थापित होती है।
4. रुद्राक्ष : माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई थी। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है रक्त प्रवाह भी संतुलित रहता है। घर में पूजा घर में इसे रखने से वहां का ऊर्जा सकारात्मक रहती है।
5. शिव का वाहन वृषभ : वृषभ शिव का वाहन है, जिसे नंदी भी कहा जाता है। वे हमेशा शिव के साथ रहते हैं। वृषभ को चार वेद और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना है। घर में चांद या तांबे का वृषभ रखना वास्तु के अनुसार शुभ होता है।
6. शिव का सेवक वासुकि : शिव जी के गले में जो नाग है उसे वासुकि कहा गया है। जब गृह निर्माण होता है तो चांद के नाग के जोड़ों को नींव में दबाया जाता है तो उसे भूमि दोष दूर होता है। इसी तरह पूजा घर में चांदी के नाग की मूर्ति की पूजा भी जाती है। यह सभी तरह के संकट दूर करने के लिए होता है। कई लोग सर्प का लॉकेट भी पहनते हैं और इसकी अंगुठी भी भी पहनते हैं। इसे कालसर्प दोष, पितृदोष, नागदोष, नागभय और राहु केतु के दोष भी दूर होते हैं।
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7. चंद्रमा : शिवजी अपने मस्तक पर चंद्र को धारण किए हुए हैं। चंद्रमा मन का कारक है। वास्तु शास्त्र में अर्द्धचंद्र के कई उपयोग बताए गए हैं। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा के दिन चंद्र की पूजा की जाती है, जिससे मानसिक दोष दूर होते हैं।
8. ओम : शिवजी को ओम स्वरूप माना जाता है। ॐ अनहद नाद का प्रतीक है। ब्रह्मांड में इसी तरह का नाद लगातार गूंज रहा है। ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोक का प्रतीक है। ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात शुद्ध प्रकाश। यह ध्वनि आज भी सतत जारी है। संपूर्ण ब्रह्मांड और कुछ नहीं सिर्फ कंपन, ध्वनि और प्रकाश की उपस्थिति ही है।
9. भभूत या भस्म : शिव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है। भस्म आकर्षण, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है। यज्ञ की भस्म में वैसे कई आयुर्वेदिक गुण होते हैं। प्रलयकाल में समस्त जगत का विनाश हो जाता है, तब केवल भस्म (राख) ही शेष रहती है। यही दशा शरीर की भी होती है। सिर पर भभूत लगाने से सभी तरह के ग्रहदोष, पितृदोष आदि संकट मिट जाते हैं।
10. शिवलिंग : शिवलिंग शिव का प्रतीक है। इसे शिवजी का विग्रह रूप कहा जाता है। इसका घर में होना ही सभी तरह के वास्तुदोष दूर करता है। साथ ही शिवजी को बिल्वपत्र अर्पित किया जाता है। यह बहुत ही पवित्र पत्ता है और इसका वृक्ष भी बहुत ही पवित्र होता है। बिल्व पत्र का वृक्ष घर के आंगन या गार्डन में लगाना बहुत शुभ होता है। बेलपत्र में भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का भी वास होता है।