देश के लोकतंत्र के इतिहास में शायद अब तक सबसे अधिक हाईवोल्टेज वाले बंगाल विधानसभा चुनाव के रुझान और नतीजे आ रहे हैं। चुनाव नतीजों और रुझानों से साफ हो गया है कि बंगाल में मोदी पर ममता का चेहरा भारी पड़ गया है। ममता बनर्जी ने अकेले दम पर हैट्रिक लगाते हुए सत्ता में वापसी कर ली है।
विधानसभा चुनाव में प्रचंड प्रचार करने वाली भाजपा बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे रह गई है। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान 200 पार का दावा करने वाली भाजपा 100 के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई है। ममता के आगे मोदी-शाह की जोड़ी को करारी मात मिली है।
ममता बनर्जी की हैट्रिक और भाजपा के 100 के आंकड़े को नहीं छू पाने के पीछे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का अहम रोल माना जा रहा है। पूरे चुनावी कैंपेन में जब भाजपा के नेता लगातार 200 पार का नारा दे रहे थे तब ममता के चुनावी सिपहसालार ने खुलकर भाजपा की करारी हार की भविष्यवाणी कर दी थी। प्रशांत किशोर ने बकायदा ट्वीट कर दावा किया था कि बंगाल में भाजपा डबल डिजिट को पार नहीं कर पाएगी।
बंगाल में ममता बनर्जी की जीत में नायक बनकर उभऱे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आखिरी जीत की ऐसी कौनसी व्यूहरचना तैयार की थी, जिसको भाजपा के चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह और उनके धुरंधर भेद नहीं पाए।
ममता की हैट्रिक में बाहरी बना ट्रंप कार्ड : बंगाल में प्रशांत किशोर ने टीएमसी का पूरा चुनावी कैंपेन बाहरी बनाम बंगाल की बेटी पर केंद्रित रखा। चुनाव में ममता बनर्जी का हर चुनावी मंच से भाजपा को बाहरी बताना टीएमसी की सत्ता वापसी की नींव साबित हुआ। भाजपा की एंट्री को रोकने के लिए प्रशांत किशोर ने तृणमूल कांग्रेस का पूरा चुनावी कैंपेन मां, माटी और मानुष को केंद्रित रखकर बनाया।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत टीएमसी के हर बड़े और छोटे नेताओं की ओर से भाजपा के नेताओं को बार-बार बाहरी कहना इसी रणनीति का पहला और प्रमुख हिस्सा रहा। भाजपा नेताओं को बाहरी बताकर प्रशांत किशोर ने पूरे चुनाव को बंगाल की अस्मिता के मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया और जिसका सीधा फायदा ममता बनर्जी को हुआ, जिसकी तस्दीक चुनाव परिणाम करते हैं।
महिला वोटर में दीदी की छवि को भुनाया : बंगाल में ममता की हैट्रिक के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने दीदी की छवि को भुनाया। बंगाल में 50 फीसदी महिला वोटर जो पूरे चुनाव के दौरान खामोश दिखाई दिए, उन्होंने एक बार फिर ममता दीदी पर भरोसा जताया और उनके भरोसे के सहारे ममता बनर्जी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। बंगाल की आधी आबादी वाले महिला मतदाताओं को साधने के लिए ममता ने इस बार 50 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा।
प्रशांत किशोर ने चुनाव से ठीक पहले ममता सरकार के काम को लोगों तक पहुंचाने पर फोकस किया। इसके लिए ममता सरकार ने चुनाव से ठीक पहले पूरे बंगाल में दुआरे-दुआरे पश्चिम बोंगो सरकार (हर द्वार बंगाल सरकार) अभियान चलाया। इस अभियान के तहत ग्राम पंचायतों से लेकर शहरों के वार्डों तक शिविरों का आयोजन कर सरकार की 11 महत्वपूर्ण योजनाओं को घर-घर पहुंचाने पर फोकस किया गया।
बूथ मैनेजमेंट पर प्रशांत किशोर का फोकस : बंगाल में ममता की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रशांत किशोर ने सबसे पहले बूथ को मजबूत करने पर ध्यान दिया। बूथ पर फोकस करने के लिए और पार्टी के बूथ कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने का काम खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने हाथों में संभाला। चुनाव से ठीक पहले ममता बनर्जी ने जिला और ब्लॉक समितियों में जो कई बड़े बदलाव किए उसके पीछे प्रशांत किशोर की ही सलाह मानी जा रही है।
PK फॉर्मूले से टिकट बंटवारा : बंगाल में ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी की कहानी उसी वक्त लिख दी गई थी जब PK फॉर्मूले के आधार पर टिकट का बंटवारा किया गया। एंटी इंकमबेंसी की मार झेलने वाले कई विधायकों को साफ कह दिया गया था कि उनको टिकट नहीं दिया जाएगा। टीएमसी के टिकट बंटवारे में प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी की ओर से किए गए चुनावी सर्वे का बहुत अहम रोल रहा और उसी की रिपोर्ट के आधार पर टिकट दिया गया। 27 सीटिंग विधायकों के टिकट काट दिए गए।
ध्रुवीकरण और इमोशनल कार्ड : बंगाल विधानसभा चुनाव का पूरा चुनावी कैंपेन दो ध्रुवों में बंटा दिखाई दिया। भाजपा हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगी थी, बंगाल में 30 फीसदी वोटर वाले मुस्लिम मतदाताओं को साधने के लिए 42 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया। इसके साथ ही 79 अनुसूचित जाति और 17 अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को टिकट देकर ममता बनर्जी ने सत्ता वापसी की।
बंगाल में 40 सींटे ऐसी थीं, जहां मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा थी और 80 सीटों पर ज्यादातर 30-35 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई। पूरे चुनावी कैंपेन में ममता बनर्जी लगातार मुस्लिम वोटरों को साधते रहीं। इसके साथ ही हिंदू वोटरों को साधने के लिए बंगाली अस्मिता का कार्ड खेला गया और मंदिरों में पूजा भी की गई। इसका सीधा असर है कि बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में टीएमसी का वोट प्रतिशत बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।