एक पुराना कथन है कि मजाक उतना ही करो जितना आप खुद सहन कर सकते हों। तात्पर्य यह कि मजाक हमेशा शालीनता की सीमा में तथा स्वस्थ मानसिकता के साथ किया जाए तो ही अच्छा। अन्यथा यही मजाक न केवल किसी को दुःख पहुँचा सकता है, बल्कि स्वस्थ संबंधों में दरार भी पैदा कर सकता है।
सोनल एवं उसकी सहेली के बीच बातचीत बंद हुए सात दिन हो गए हैं। सोनल के कारण पूछने पर सफाई में कहती हैं- 'झगड़े जैसी तो कोई बात ही नहीं थी। मैं तो यूँ ही उसके कपड़ों को लेकर मजाक कर रही थी। मुझे क्या पता था, उसे इतना बुरा लग जाएगा।'
इसी तरह मिसेस कपूर उस दिन जोशीजी की पार्टी में से अचानक उठकर चली गईं। आस-पास बैठे लोग पहले तो कुछ समझ नहीं पाए। बाद में पता चला कि मिसेस खन्ना ने उनके मोटापे को लेकर कुछ मजाक किया था। ऐसे वाकिए हमारी आम जिंदगी में होते रहते हैं। यूँ तो आजकी तनावभरी एवं व्यस्त जीवनशैली में हास्य का अपना महत्व है, यह हमें खुश व ताजा-दम रहने में सहायता करता है, लेकिन ठीक तरह से न किया गया मजाक पल भर में माहौल को बिगाड़ भी सकता है। इसलिए हमेशा मजाक करते वक्त ध्यान रखें कि मजाक में :
तानेबाजी न हो
मजाक के बहाने अपने मन में दबी कुंठाओं को कटु हास्य के जरिए व्यक्त करने की कोशिश न हो। मजाक के पीछे किसी को व्यंग्य बाणों से
शारीरिक या मानसिक कमजोरी, गरीबी, अशिक्षा इत्यादि को निशाना न बनाया जाए। ये मानवीय व नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं है। मजाक किसी को दुःखी करने के लिए नहीं किया जाता
आहत करने की मंशा न हो। कई बार लोग किसी के प्रति मन में कड़वाहट पाले बैठे रहते हैं व समय आने पर सार्वजनिक रूप से उसे उजागर करते हैं, फिर बुरा लगने पर कहते हैं कि उन्होंने तो मात्र मजाक किया था।
यदि मजाक ताना न भी हो, लेकिन ऐसा अंदेशा हो कि कोई उसे ताने के रूप में ग्रहण कर सकता है तो सावधानी बतौर ऐसा मजाक न करें।
कमियाँ जतलाने की कोशिश न हो
शारीरिक या मानसिक कमजोरी, गरीबी, अशिक्षा इत्यादि को निशाना न बनाया जाए। ये मानवीय व नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं है। मजाक किसी को दुःखी करने के लिए नहीं किया जाता। यों अपनी हँसी के लिए दूसरों को रुलाने का किसी को क्या अधिकार है? इससे आपकी छवि का भी पतन होता है। सोचिए कि यदि आपकी किसी कमी को लेकर कोई ऐसा मजाक बनाए तो आपको कैसा लगेगा?
किसी की प्रतिष्ठा न गिराई जाए
कई बार लोग अपनी व सामने वाले की उम्र, रिश्ता एवं वरिष्ठता के बारे में सोचे बगैर चाहे जो बोल देते हैं तथा मौका आने पर उसे मजाक कह देते हैं। ये आपके व सामने वाले के संबंधों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इससे आपकी प्रतिष्ठा भी धूमिल होती है। अपने बॉस, बुजुर्ग, गुरु इत्यादि से बातें करते समय उनकी इज्जत का सदैव ध्यान रखें।
स्वाभिमान आहत न हो
हर व्यक्ति का अपना स्वाभिमान होता है व कुछ स्वभावगत मूल्य भी। कई लोग अपनी एक विशिष्ट छवि बनाकर रखने में विश्वास रखते हैं।
कई बार लोग अपनी व सामने वाले की उम्र, रिश्ता एवं वरिष्ठता के बारे में सोचे बगैर चाहे जो बोल देते हैं तथा मौका आने पर उसे मजाक कह देते हैं
अगर आपका मजाक उनके अहं को चोट पहुँचाएगा तो निश्चित रूप से आपके संबंधों की धज्जियाँ तो उड़ेंगी ही, अन्य लोग भी आपसे बातें करनेमें कतराने लगेंगे।
स्वभाव एवं स्थान का ध्यान रखा गया हो
हर व्यक्ति अपने आपमें अद्वितीय है व हरेक का अपना स्वभाव होता है। मजाक करते समय जिसके प्रति मजाक किया जा रहा है, वह इसे किस रूप में लेगा यह अंदाजा लगा लें। इसी प्रकार मजाक में स्थान का ध्यान भी रखना बहुत जरूरी है। उदाहरण के तौर पर यदि आप अपने किसी बचपन केदोस्त से मिलने उसके दफ्तर गए हुए हैं, जहाँ वह अपने मातहतों से घिरा बैठा है तो वहाँ उसके कार्यालय का ध्यान रखते हुए ही बात करना उचित है। घर वाली स्टाइल में धौल-घप्पा या मजाक करना शायद उसे या अन्य लोगों को अच्छा न लगे।
उचित समय का ध्यान रखें
सोचिए किसी के उठावने या मातमपुर्सी में आए लोगों में से कोई ठहाके लगाना या मजाक करना शुरू कर दे तो अन्य लोगों को कैसा लगेगा। मजाक में हमेशा स्थान का ध्यान रखा जाना जरूरी है। गलत समय पर सही की गई बात भी अपना असर बदल देती है एवं वह दुःखपूर्ण परिणामों की कारक भी हो सकती है।
अशालीनता से बचें
मजाक में भद्दे व अशालीन शब्दों का प्रयोग न हो। आपके शब्दों से आपके स्तर का तो पता चलता ही है, यह विवाद को भी जन्म दे सकता है। हमेशा सौम्यता एवं शिष्टता का ध्यान रखते हुए अपनी बात कहें। भद्रता की सीमा न तोड़ें। हो सकता है, आपका मजाक वे लोग भी सुन रहे हों, जिनकी उपस्थिति से आप बेखबर हैं।