ब्याह एक ऐसा बंधन होता है, जिसमें किसी इंसान की जिंदगी दाँव पर लगती है। यदि हार गए तो दुख-दर्द का आलिंगन और यदि जीत गए तो खुशियों की बहार। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका दांपत्य जीवन खुशियों से भरा हो, लेकिन हम जो कुछ सोचें सच हो जाए, ऐसा संभव नहीं होता।
अपने जीवन में कुछ पाने के लिए प्रयास तो हमें ही करना पड़ता है। पति-पत्नी वो धुरी हैं, जिस पर परिवार की गाड़ी का पहिया घूमता है। यदि ये दोनों अपने स्वतंत्र फैसले नहीं लेंगे तो जीवन में हमेशा दुखी व असंतुष्ट ही रहेंगे। यह सही है कि हमारे बड़े-बुजुर्ग हमसे अधिक अनुभवी होते हैं परंतु कुछ फैसलों में उनकी दखलंदाजी आपके पारिवारिक जीवन को तहस-महस कर सकती है।
यदि जीवन में खुशियाँ लानी हैं तो हमें स्वयं फैसला करना सीखना होगा, जब तक हम दूसरों के फैसलों पर जीते रहेंगे, तब तक हम पंगु बने रहेंगे व जीवन में कभी सुख और संतुष्टि का अहसास नहीं होगा।
जब फैसला हो शादी का :- अक्सर कई मामलों में यह देखा जाता है कि युवा अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों की जिद व बिगड़ते स्वास्थ्य की खातिर उनकी मर्जी से शादी का फैसला तो कर लेते हैं परंतु जब परिवार की गाड़ी के दो पहिए पति और पत्नी अलग-अलग दिशा में चलने लगते हैं तब महज सामंजस्य की रस्सी से इस रिश्ते को जोड़कर काम चलाया जाता है।
शादी आपको करनी है, अपने जीवनसाथी का साथ आपको निभाना है, तो फिर आपके जीवन के इस अहम फैसले में किसी तीसरे के निर्णय का अंधानुकरण क्यों? आखिर आपने ऐसा फैसला क्यों लिया, जिसमें किसी एक की मुस्कुराहट की खातिर आपको अपनी जीवनभर की खुशियों को तिलांजलि देना पड़ी?
कब गूँजेगी आँगन में किलकारी :- शादी होने के कुछ ही समय बाद परिवार के लोग यह राग अलापने लगते हैं कि अब हमें जल्दी ही पोता या पोती चाहिए ताकि मरने से पहले उन्हें गोद में खिला सकें। उनका तर्क होता है कि 'तुम चिंता मत करना हम सभी है ना उसकी देखभाल के लिए।' इस प्रकार की लुभावनी बातें आपको बस दिलासा दे सकते हैं, आपकी जिम्मेदारियाँ नहीं ले सकते हैं। आज वो साथ है तो आपकी जिम्मेदारियाँ कम हो जाएँगी परंतु जब वे आपसे किनारा कर लेंगे, तब क्या होगा?
माँ-बाप बनना इतना आसान नहीं है। यह शब्द तो भावी जिम्मेदारियों का पर्याय है, जिसके हकीकत बनते ही आपका दांपत्य सुख कुछ समय के लिए खो सा जाता है और आप जिम्मेदारियों से इस कदर बँध जाते हैं कि कुछ समय के लिए अपने जीवनसाथी तक को भूल जाते हैं। हर जिम्मेदारी को अपनाने की एक उम्र होती है जब व्यक्ति स्वयं अपनी खुशी से इन जिम्मेदारियों को अपनाना चाहता है। हमेशा याद रखें कि जिम्मेदारियाँ कभी थोपी नहीं जाती।
इसके लिए तो आपको स्वयं फैसला लेना पड़ता है कि आप इन सबके लिए वाकई में तैयार हैं या नहीं। क्या आप किसी के दबाव में आकर तो ऐसा नहीं कर रहे हैं? यदि ऐसा है तो माफ कीजिए आप अपनी जिंदगी और खुशियाँ दाँव पर लगा रहे हैं।
यदि जीवन में खुशियाँ लानी हैं तो हमें स्वयं फैसला करना सीखना होगा, जब तक हम दूसरों के फैसलों पर जीते रहेंगे, तब तक हम पंगु बने रहेंगे व जीवन में कभी सुख और संतुष्टि का अहसास नहीं होगा।