2. सामाजिक दबाव : पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, छुआछूत, अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा व देवदासी प्रथा, तीन तलाक और अन्य सामाजिक कुरीतियों से महिलाओं को बाहर निकालकर उन्हें साक्षम बनाना। इसके लिए राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर कई लोगों ने कार्य किए हैं। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा व सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई आदि कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नारी को सामाजिक दबाव और बंधन से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिलाओं का सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर अपने और अपने देश के बारे में सोचने की क्षमता का विकास होना ही महिला सशक्तिकरण कहलाता है।
2. आर्थिक आजादी : महिलाओं को आर्थिक मजबूती देने के लिए सरकार ने कई तरह की योजनाओं पर कार्य किया है। नौकरी और व्यापार के साथ ही हुनर में महिलाओं को कई अवसर प्रदान किए गए। नौकरी में समान अवसर देना, मताधिकार दिलाना, लैंगिक भेदभाव मिटाना और कारोबार के लिए धन उपलब्ध कराना इसमें महत्वपूर्ण रहा है। देश के कई सामाजिक ट्रस्ट और सरकार स्वरोजगार स्वयं सहायता के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में लगे हैं। महिलाओं को समान वेतन का अधिकार है। समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता।
5. महिला सुरक्षा : देशभर में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और अपराध को लेकर सरकार चिंतित है। देश में अगल से महिला थाना और महिलाओं के लिए हेल्पलाइन होती है। इसी के साथ ही महिलाएं चाहें तो अपने उपर हुए अत्याचार की कोर्ट में भी शिकायत कर सकती है। महिला बाल विकास निगम में भी महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर एक एप्लिकेशन दायर कर न्याय की मांग कर सकती है। केंद्र सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण के शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन का पैड लीव दी जाएगी। यदि किसी भी प्रकार के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर महिलाओं को परेशान किया जाता है तो साइबर सेल में महिलाओं के लिए अगल से एक विंडो है। समाज में महिलाओं को सम्मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए क्योंकि आज के समय में महिला हर क्षेत्र में आगे हैं चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर खेल के क्षेत्र में।