नर्म लहजा और पत्थर दिल कहां से लाई हो आयशा
तुमने यह कैसी कर दी नादानी, बैठकर नदिया के पास नहीं सीखा लहरों से निर्बाध बहना, कितने तुफान और भवंर सीने में छुपा कर बस खामोशी से बहते रहना। नदी और नारी में यही तो समानता है...फिर चुनौतियों से हार मान कर स्वयं को मिटाना कहां का बुद्धिमानी है...
आयशा तुमने कहा प्यार एक तरफा नहीं करना, सच कहा फिर क्यों किसी के लिए अपनी बेशकीमती ज़िन्दगी फना कर दी। दुनिया के सब रिश्ते नाते बेमानी यहां पर मां की गोद का कोई सानी नहीं वो तो जन्नत है उसका खयाल नहीं आया उसे क्यों उम्रभर के लिए सूनी कर दी,किस बात की उसे उम्र भर की सजा दे गई। पिताजी के सिसकते व मिन्नत करते हुए शब्दों को सुनकर तुम्हारा कलेजा छलनी नहीं हुआ....
अपनी आत्मा की आवाज़ सुन लेती, वो तुम्हें रोक लेती और परिणाम कुछ और होता। तुम्हें अब भी उसकी फिक्र कि जिसने तुम्हें ऐसा करने पर मजबूर कर दिया उसे तुम सजा से बचा रही हो... प्यार क्या होता है एकतरफा निभा दिया.. नमन तुम्हें आयशा।