हर व्यक्ति के लिए मां सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि जज़्बात है। किसी ने सही कहा है कि ईश्वर सबके घर नहीं जा सकता इसलिए उसने मां की रचना की, जो हर बच्चे के लिए ईश्वर के समान होती है। मां हमारी दोस्त भी होती है और हमारी टीचर भी, मां हमें चलना सिखाती है और मुश्किलों में गिरने से बचाती है।
मैं जब तक घर नहीं लौटूं न खाती है न सोती है
छुपाता हूं मैं अपने ग़म मगर मां जानती सब है
मैं हंसता हूं तो हंसती है मैं रोता हूं तो रोती है- राज राठौड़
ताज हो, तख्त हो, तो भी मां बिना कुछ नहीं।
और तो तख्त जन्नत का भी मिल जाए तो क्या,
और भगवान भी पूछें तो कह देना सब कुछ हो पर मां बिना कुछ भी नहीं। - प्रोफेसर संकल्प शर्मा