महिला दिवस विशेष : गुलाबी रंग बनाम महिलाएं !

महिला है तो रंग गुलाबी ही पसंद होगा...गुलाबी तो महिलाओं का रंग है...लड़कियों के लिए सोचना क्या, बस कोई भी गुलाबी रंग चुन लो...गुलाबी रंग यानि लड़कियों वाला कलर। इस तरह के जुमले आपने भी सुने होंगे, क्योंकि यह बेहद आम है।  


गुलाबी रंग, गुलाबी गैंग, गुलाबी साड़ी, गुलाबी फूल... और महिलाएं। यह गुलाबी रंग जैसे महिला होने का प्रतीक सा बन गया है। अब महिलाओं के लिए किसी भी संदर्भ में चुना जाने वाला रंग सिर्फ गुलाबी होकर रह गया है, जैसे इसे खास तौर से महिलाओं के लिए ही बनाया गया हो।
 
लेकिन सही मायनों में यह गुलाबी रंग महिला सशक्तिकरण या महिलाओं का प्रतीक नहीं है, ना ही इस पर महिलाओं का एकाधि‍कार है, हां महिलाएं अपने कोमल हृदय और गुणों के कारण गुलाबी रंग को पसंद करती है य‍ह अलग बात है। लेकिन इसे पुख्ता तौर पर सिर्फ महिलाओं की पहचान के तौर पर इस्तेमाल करना सही नहीं है।
 
नारी असंख्य अनमोल गुणों का भंडार है। जहां उसमें कोमल और करुण भावों का मखमली एहसास पनपता है वहीं अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की शक्ति, साहस, निर्णय क्षमता और क्रोध भी है। वैचारित मतभेदों पर विजय पाने के लिए उसके पास तार्किक क्षमता भी है और स्थि‍ति-परिस्थि‍ति के अनुरूप बरती जाने वाली समझ भी। वह घर, परिवार, रिश्ते-नातों और समाज के साथ देश चलाने का हौंसला भी रखती है और विनम्र और श्रृद्धा भाव के साथ झुकने का गुण भी। 
 
अस्तित्व से लेकर व्यक्तित्व और पहचान तक कई रंग हैं उसके जीवन के, कितनी ही सुगंध है उसके भावों की। तो फिर कैसे उसे सिर्फ एक गुलाबी रंग में समेटा जा सकता है? क्या यह गुलाबी रंग स्त्री का प्रतिनिधि‍त्व करता है? नहीं वह स्त्री का प्रतिनिधि‍त्व नहीं करता बल्कि उस सौम्य भाव, मन में छुपे प्रेम, सौभाग्य और कोमल भावना का प्रतिनिधि‍त्व करता है, जो प्रकृति ने स्त्री को भी सौगात के रूप में दी है। स्त्री तो कई रंगों से सजी मूरत है जिसके लिए किसी एक रंग को चुना नहीं जा सकता। हर रंग की उसमें चमक है और हर फूल की उसमें महक, उसे रंग में बांधना सही नहीं है।
 
देखा जाए तो नारी का अस्तित्व एकतरफा भी नहीं है, वे एक पुरुष का किरदार भी तो भलीभांति निभाती है, जरूरत पड़ने पर। घर की देहरी से संसार तक वह कंधे से कंधा मिलाकर चलना भी जानती हैं। वो सब कुछ कर सकती है जो उसे बराबरी पर लाकर खड़ा करता है, फिर उसके लिए कोई रंग, फूल, कपड़े, काम या फिर जिम्मेदारी विशेष कैसे हो सकती है। वह अपनी पहचान बताने के लिए किसी रंग विशेष का लबादा क्यों ओढ़े, जब उसकी पहचान से संसार अवगत है। अगर उसे ऐसा करना ही पड़े, तो यह महिला दिवस कैसे हुआ! जब उसे स्वच्छंदता की जगह किसी रंग, भाव या वस्तु विशेष से बंधना पड़े। जो बंधनों से मुक्त करे वही तो उसका अपना दिवस होगा, जरा सोचिए।

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