साहसी महिला से बनता है शक्तिशाली समाज

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को हर उस स्त्री के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपनी एक नई पहचान बनाई है । हर वह स्त्री जिसने वो करने का साहस दिखाया जो समाज की रूढ़िवादी सोच को चुनौती देता है वह इस सम्मान की हकदार है। पर आज भी अधिकतर महिलाएं इस रूढ़िवादी सोच का हिस्सा हैं। उन्हें जागृत करने के लिए  एक छोटी सी पहल हम सबको करनी चाहिए।

हमारे समाज में जहां एक तरफ लडकियां भ्रूणहत्या, बाल विवाह, शारीरिक शोषण या दहेज प्रथा की शिकार हैं, वही दूसरी और ऐसी महिलाएं भी है जिन्होंने इन सबसे लड़कर एक अलग पहचान बनाई है । वह कुछ अलग नहीं करती पर अपनी शक्ति को पहचानती है और जानती है की वह हर वो चीज़ करने में समर्थ है जो एक पुरुष कर सकता है।
 
एक लड़की को, पैदा होती ही सिखाया जाता है की उसे तमीज और तहजीब से रहना चाहिए। अपनी आवाज ऊंची करके नहीं बोलना चाहिए, बल्कि बहुत जगह तो उसे बोलने ही नहीं दिया जाता । लड़कियों को पढने नहीं दिया जाता ताकि वो अपने हक़ के लिए आवाज ही ना उठा सके। उन्हें ज़िन्दगी में तैयार किया जाता है शादी के लिए और किसी की पत्नी बनने के लिए। उसे नाजों से पाला जाता है, बाहर धुप में ज़्यादा नहीं खेलने दिया जाता, इसलिए नहीं क्योंकि उनसे ज्यादा प्यार होता बल्कि इसलिए की अगर उन्हें चोट लग जाये और उसका निशाँ रह जाये या उनका रंग सावला हो जाये तो कोई लड़का उन्हें पसंद नहीं करेगा।
 
अगर हम एक लड़की को सिखाएं कि उसकी सुंदरता इसमें नहीं है कि वह कैसी दिखती है, बल्कि उसमें है की वह अपने लिए और अपने हक के लिए कितनी बहादुरी से लड़ सके, तो हमारे समाज में लिंग असमानता ( Gender InqualityGender Inequality) हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी और एक पुष्ट समाज का निर्माण होगा। 
 
उन्हें सीखना चाहिए की उनके रेशमी लंबे बाल उनकी सुंदरता नही बढ़ाते बल्कि उसके नीचे जो दिमाग है वह उसे कितने अच्छे से अपने हक़ में फैसले लेने के लिए इस्तेमाल कर सके उसमें उनकी सुंदरता है।
 
हर लड़की को बताना चाहिए कि जो वह पहनती है उससे वह नहीं निखरती, वह निखरती है अपने लिए इज्जत और प्रतिष्ठा कमाने में। सीखना चाहिए कि उनके गले का हार भले ही उनकी सुंदरता बढ़ाता हो, पर उनकी असली सुंदरता है साहस से। अपने हक के लिए आवाज उठाना। कलाईयों में पहनी हुई चूड़ियां उनका सौंदर्य नहीं बढ़ाती, उनका सौंदर्य बढ़ता है अपनी आत्म रक्षा में हाथ उठाने से। आंखों का काजल उन्हें सुंदर नहीं बनाता बल्कि वह हिम्मत उन्हें सुन्दर बनाती है जिससे, वह उन्हें वापिस गुस्से में घूर के देख सके जो उन्हें गंदी नजर से देखता है। 
 
अगर हम अपनी बेटियों को यह सब सिखाएं, तो वह किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहेंगी। उन्हें दूसरों के साथ जिंदगी बिताने की जगह अगर हम उन्हें जिंदगी निडरता से जीना सिखाएं, तो हर लड़की अपने में ही एक मिसाल बन जाएगी।
 
हम एक राय बना लेते हैं कि लड़कियां शारीरिक तौर से कमजोर होती हैं, पर हम भूल जाते हैं कि वह ही एक बच्चे को जन्म देती है, जिसके लिए बहुत ताकत चाहिए होती है। हिम्मत शारीरि‍क नहीं बल्कि मानसिक होती है। और हम उन्हें हर समय मानसिक तरह से कमजोर बनाते है। अगर हम हर लड़की को यह एहसास कराएंगे कि उनकी बहादुरी और हिम्मत अंदरूनी है और वह किसी से कम नहीं है, तो हर की लड़की इस रूढ़िवादी समाज की सोच से ऊपर उठकर वो कर पाएगी जो हम कभी नहीं सोच सकते। एक महिला की मानसिक क्षमता बहुत होती है बस नहीं मिलता है तो उन्हें बराबर का मौका अपना हुनर दिखाने का। इस महिला दिवस पर अगर हम सब एक छोटी सी पहल करें, हर एक महिला को उसकी अंदरूनी शक्ति से पहचान कराने की, तो हम एक बहुत शक्तिशाली समाज का निर्माण कर पाएंगे।

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