Rajasthan: राजनीतिक पटल पर कई अमिट निशान छोड़ गया 2022, गहलोत-सचिन के बीच वर्षभर चली खींचतान

शनिवार, 31 दिसंबर 2022 (12:16 IST)
जयपुर। सत्तारूढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच 'खींचतान' और बयानबाजी तथा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के 'सफल' राजस्थान चरण के बीच बीता साल राज्य के राजनीतिक पटल पर अनेक अमिट निशान छोड़ गया। वर्षभर पायलट और सचिन एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजते रहे।
 
सत्तारूढ़ कांग्रेस ने राज्य से राज्यसभा की चार सीटों के लिए तथा एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव में अपना दम दिखाया। वहीं कोटा में छात्र आत्महत्याएं, जोधपुर जिले में रसोई गैस सिलेंडर फटने से 35 लोगों की मौत, सांप्रदायिक तनाव की छिटपुट घटनाएं, उदयपुर में कथित तौर पर मोहम्मद का अपमान करने के लिए एक दर्जी की हत्या, जैसे घटनाक्रम भी इस साल में दर्ज हुए।
 
राजनीतिक पटल की बात की जाए तो राजस्थान के लिए यह बीतता साल काफी 'घटना प्रधान' रहा। तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने 2020 में कुछ विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी।
 
साल 2022 में गहलोत गुट की बारी थी जब उसने पार्टी आलाकमान के सामने अपना 'शक्ति प्रदर्शन' किया। कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मई में उदयपुर में पार्टी के 'चिंतन शिविर' में विचार-मंथन सत्र के बाद भारत जोड़ो यात्रा की घोषणा की।
 
हालांकि राज्य में पार्टी की 'गुटबाजी' की जगह पार्टी आलाकमान के लिए चिंता व परेशानी का सबब बनती नजर आई। पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव लिए गहलोत का नाम गांधी परिवार द्वारा समर्थित उम्मीदवार के रूप में सामने आने पर अचानक एक नया संकट खड़ा हो गया।
 
उल्लेखनीय है कि 25 सितंबर को मुख्यमंत्री आवास पर कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक बुलाई गई थी। इसे कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले राज्य के मुख्यमंत्री को बदलने की कवायद के तौर पर देखा गया, क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था।
 
हालांकि, सीएलपी की बैठक नहीं हो सकी, क्योंकि गहलोत के वफादार विधायकों ने संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर समानांतर बैठक की और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के किसी भी संभावित कदम के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
 
इन विधायकों का कहना था कि अगर विधायक दल का नया नेता चुनना है तो वे उन 102 विधायकों में से हो जिन्होंने जुलाई 2020 में राजनीतिक संकट के दौरान अशोक गहलोत सरकार का समर्थन किया था। तब पायलट और 18 अन्य विधायकों ने गहलोत के खिलाफ बगावत की थी।
 
इसके बाद कांग्रेस की अनुशासनात्मक समिति ने मंत्री शांति धारीवाल और महेश जोशी तथा पार्टी के नेता धर्मेंद्र राठौड़ को उनकी 'घोर अनुशासनहीनता' के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया। पायलट व पार्टी के तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन द्वारा अनुशासनहीनता के मुद्दे को उठाए जाने के बावजूद इस मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
 
राहुल गांधी की अगुवाई वाली यात्रा के राज्य में प्रवेश करने के कुछ ही दिन पहले, पार्टी की गुटीय लड़ाई फिर से भड़क गई जब गहलोत ने पायलट को 'गद्दार' कहा जिसे मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता।
 
इससे पहले, 200 सदस्यीय विधानसभा में 108 सीटों वाली कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार, मीडिया उद्योगपति सुभाष चंद्रा द्वारा पेश की गई चुनौती का मुकाबला किया। राज्य की चार में से तीन राज्यसभा सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। पार्टी ने सरदारशहर विधानसभा सीट पर उपचुनाव भी जीता और इस सीट पर कब्जा कायम रखा।
 
पैगंबर मोहम्मद का कथित रूप से अपमान करने के आरोप में उदयपुर में एक दर्जी की हुई हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। भरे बाजार में दो लोग दर्जी की दुकान में घुसे और उसकी गर्दन पर चाकू से वार कर उसकी हत्या कर दी थी, और इसका वीडियो बना कर इस खौफनाक वीडियो को ऑनलाइन अपलोड कर दिया।
 
पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को कुछ ही घंटे में गिरफ्तार कर लिया। यह घटना भाजपा नेता नूपुर शर्मा द्वारा इस्लाम पर कथित टिप्पणी के बाद हुई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में अन्य लोगों का भी नाम लिया और दावा किया कि पाकिस्तानी नागरिक भी अपराध में शामिल थे।
 
इस वर्ष अन्य सांप्रदायिक घटनाएं हुईं। अप्रैल में करौली शहर में नवसंवत्सर के उपलक्ष्य में हिन्दू संगठनों द्वारा मुस्लिम बहुल क्षेत्र से निकल रही मोटरसाइकिल रैली पर असामाजिक तत्वों द्वारा पथराव के बाद तनाव हो गया। इसके अगले महीने ईद पर गहलोत के गृहनगर जोधपुर में हिंदू और मुसलमान भिड़ गए।
 
अलवर की भाजपा बोर्ड वाली राजगढ़ नगरपालिका में अतिक्रमण हटाने के अभियान में एक मंदिर को तोड़ दिया गया। भाजपा व कांग्रेस ने इसके लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया। भाजपा ने इसे मुख्यमंत्री गहलोत की "हिंदू विरोधी" सरकार के एक और उदाहरण के रूप में पेश किया।
 
बीते साल विपक्षी भाजपा ने कानून व्यवस्था विशेषकर महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों को लेकर, राज्य सरकार पर बार-बार हमला किया, खासकर भाजपा ने इसे और सरकार की अन्य कथित विफलताओं को उजागर करते हुए सभी विधानसभा क्षेत्रों में 'जन आक्रोश यात्रा की घोषणा की।
 
दिसंबर महीने में सीकर शहर में बदमाश राजू ठेहट की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोलीबारी में एक अन्य आम नागरिक ताराचंद भी मारा गया था। वे उस इलाके में कोचिंग इंस्टीट्यूट में अध्ययनरत अपनी बेटी से मिलने आया था।
 
सत्तारूढ़ कांग्रेस से इतर मुख्य विपक्षी दल भाजपा की बात करें तो वहां भी राज्य स्तर पर सबकुछ सामान्य नजर नहीं आया। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना जन्मदिन मनाने के लिए बूंदी और झालावाड़ जिलों में "देव दर्शन यात्रा" आयोजित की जिसमें पार्टी के कई विधायक शामिल हुए। कई लोगों ने इसे उनके शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा, जो पार्टी आलाकमान को दिखाना चाहती हैं कि वे 2023 में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में बनी हुई हैं।
 
वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी जनकल्याणकारी व महत्वाकांक्षी योजनाओं का जिक्र बार बार करते रहे। उनकी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और शहरी रोजगार गारंटी योजना शुरू की। गहलोत ने राज्यव्यापी राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक खेलों की शुरुआत की।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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