Political events of India in 2023: बाबा कबीर ने कहा है- जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान... लेकिन, भारतीय राजनीति के संदर्भ में यह बात बिलकुल ही उलट है। राजनीतिक दलों के फैसले जाति को ध्यान में रखकर ही किए जाते हैं। 2023 में राजनीतिक गलियारों में जाति जनगणना का मुद्दा सुर्खियों में रहा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो जातिगत सर्वेक्षण करवा भी लिया, वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी अपनी चुनावी सभाओं में जाति का मुद्दा प्रमुखता से उठाते रहे। साल के उत्तरार्ध में हुए चुनाव के बाद भाजपा ने भी सीएम और डिप्टी सीएम बनाने में जातिगत समीकरणों का प्रमुखता से ध्यान रखा। दरअसल, सभी दलों की नजर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर है।
सत्ता पक्ष भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्ष ने 'इंडिया' नामक गठबंधन इसी साल बनाया। इस गठबंधन में सभी दलों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। हर दल का नेता प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर दिखाई दे रहा है। हालांकि साल के अंत में हुई बैठक में प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष और दलित चेहरे मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे बढ़ाया गया है।
जहां तक चुनावी राजनीति का सवाल है तो भाजपा का पलड़ा भारी रहा। कांग्रेस ने कर्नाटक भाजपा से छीना, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के हाथ से निकल गए। मानहानि मामले में राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता चली गई, लेकिन बाद में बहाल भी हो गई। साल के अंत में तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा की सदस्यता जाने का मुद्दा सुर्खियों में रहा। आइए जनते हैं वर्ष 2023 की प्रमुख राजनीतिक घटनाएं....
9 राज्यों के विधानसभा चुनाव : साल 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। इनमें 4 राज्य- मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और मिजोरम पूर्वोत्तर के थे, जबकि 2 राज्य- कर्नाटक और तेलंगाना दक्षिण के थे। हिन्दी पट्टी के मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल के अंत में चुनाव हुए। त्रिपुरा में भाजपा ने जहां सत्ता में वापसी की, वहीं नागालैंड में एनपीपी के सहयोग से गठबंधन सरकार में भागीदारी की। मेघालय में स्थानीय पार्टी के एनपीपी सरकार बनाने में सफल रही, वहीं मिजोरम में 5 साल पहले बनी जेडपीएम ने मिजो नेशनल फ्रंट को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
हिन्दी भाषी राज्यों में भाजपा का जोर रहा। मध्य प्रदेश में अटकलों के विपरीत भाजपा ने 163 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस 66 सीटों पर ही सिमट गई। राजस्थान में 115 सीटें जीतकर भाजपा ने सरकार बनाई। 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में भाजपा ने 54 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। यहां भी शुरुआती दौर में कांग्रेस का ही दबदबा माना जा रहा था।
छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस को दक्षिणी राज्य कर्नाटक और तेलंगाना से अच्छी खबर मिली। कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया, जबकि तेलंगाना में बीआरएस को हराकर वहां एकतरफा बहुमत हासिल किया। हालांकि किसी समय देश के सबसे बड़े हिस्से पर राज करने वाली कांग्रेस के पास अब सत्ता के नाम पर सिर्फ 3 नाम कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना रह गए हैं। तमिलनाडु, झारखंड और बिहार में पार्टी सत्ता में साझेदार की भूमिका में है।
बिहार में जाति सर्वेक्षण : वर्ष 2019 में नीतीश कुमार ने सबसे पहले जाति जनगणना के मुद्दे को हवा दी थी, लेकिन 2023 में यह मुद्दा पूरे साल सुर्खियों में रहा। नीतीश कुमार ने तो बिहार में जातिगत सर्वेक्षण को अंजाम भी दे दिया। सर्वेक्षण के जो आंकड़े आए हैं, उनके मुताबिक बिहार में आरक्षण सीमा 65 प्रतिशत तक हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में पिछड़ा वर्ग में 33.16% लोग हैं, जबकि अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 33.58% है। सामान्य वर्ग में 25.09% लोग आते हैं। राहुल गांधी ने भी चुनावों और अन्य सभाओं में जाति जनगणना के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, लेकिन उन्हें यह दांव उलटा पड़ गया। छत्तीसगढ़ में ही 15 सवर्ण उम्मीदवारों में से 13 चुनाव हार गए। कहीं न कहीं इसका सामान्य जाति के लोगों में नकारात्मक संदेश गया।
भाजपा का जाति कार्ड : भाजपा ने इस जाति जनगणना या सर्वेक्षण को चुनावी मुद्दा तो नहीं बनाया, लेकिन बहुमत के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों का चयन किया, उस पर जातिवाद का असर साफ दिखा। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मुख्यमंत्री आदिवासी, उपमुख्यमंत्री पिछड़ा और ब्राह्मण विधायक को बनाया, वहीं मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पिछड़ा, उपमुख्यमंत्री दलित एवं ब्राह्मण चेहरों को बनाया। विधानसभा अध्यक्ष राजपूत विधायक को तोमर को बनाने की घोषणा की गई। राजस्थान में जातिगत समीकरण साधे गए। मुख्यमंत्री ब्राह्मण और डिप्टी सीएम राजपूत और दलित को बनाया गया। अर्थात कोई भी पार्टी जातिवाद से अछूती नहीं रही।
इंडिया गठबंधन का गठन : भाजपा से मुकाबला करने के लिए 18 जुलाई 2023 को भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A) गठबंधन का गठन 26 राजनीतिक दलों ने मिलकर किया। बाद में इनकी संख्या बढ़कर 28 हो गई। इनमें कांग्रेस के अलावा जदयू, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी) समेत अन्य दल शामिल थे। यदि गठबंधन के नेता ईमानदारी से एक दूसरे को सहयोग करते हैं तो लोकसभा चुनाव 2024 में काफी हद तक भाजपा को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि सत्ता हासिल करना उनके लिए दूर की कौड़ी ही रहेगी।
rahul gandhi
राहुल और महुआ की सदस्यता रद्द : मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता इसी साल रद्द हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनकी सदस्यता बहाल हो गई। राहुल गांधी दो साल की सजा भी सुनाई गई थी। पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में टीएमसी की कृष्णानगर सीट से सांसद निर्वाचित हुईं महुआ मोइत्रा को भी अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। 8 दिसंबर को लोकसभा की आचार समिति की रिपोर्ट के आधार पर उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। उन्होंने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
नई संसद का उद्घाटन : नए संसद भवन का उद्घाटन भी इसी साल हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इसके उद्घाटन को लेकर काफी विवाद हुआ विपक्ष का कहना था कि इसका उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को करना चाहिए।
ईडी का चाबुक : इस साल ईडी, सीबीआई समेत केन्द्रीय एजेंसियों का जोर रहा है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को 26 फरवरी को आबकारी घोटाले में CBI ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद 1 मार्च 2023 को दिल्ली के डिप्टी CM पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह इसी साल जेल गए। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भी ईडी ने शिकंजा कसने की कोशिश की गई। देशभर में कई अन्य नेता भी केन्द्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू के ठिकानों पर छापेमारी में 250 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद हुई।
एनसीपी में बगावत : इस साल महाराष्ट्र के दिग्गज मराठा नेता शरद पवार को उनके ही भतीजे अजित पवार जोर का झटका जोर से दे दिया। अजित चाचा पवार का साथ छोड़कर भाजपा-शिवसेना गठबंधन वाली सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार के साथ शुरू में कम विधायक गए थे, लेकिन बाद में और कई और विधायक भी उनके साथ चले गए। अजित की तरफ से शरद पवार को ये बहुत बड़ा झटका था। अजित ने शरद को दूसरा झटका तब दिया जब उन्होंने पार्टी के चुनाव चिह्न पर दावा ठोंक दिया। पार्टी जरूर टूटी, लेकिन पूरे साल चाचा-भतीजे के बीच मेलमिलाप बना रहा।
साल के अंत में संसद ने भी एक कीर्तिमान रचा, जब शीतकालीन सत्र में विपक्ष के 140 से ज्यादा सांसदों को निलंबित कर दिया गया। यह अब तक का सबसे बड़ा निलंबन था। महिला आरक्षण बिल या नारी शक्ति वंदन अधिनियम को 29 सितंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई और इसी के साथ यह कानून बन गया।