भावातीत ध्यान के योगी

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ऐसा क्या था, जो महर्षि महेश योगी की ओर सारी दुनिया खिंची चली गई। उनके ध्यान में ऐसी क्या खासियत थी कि दुनिया जिस बीटल्स की तरफ आकर्षित थी, वही म्युजिक ग्रुप बीटल्स महर्षि महेश योगी के आगे समर्पणकर चुका था। ऐसा क्या था कि सारा पश्चिम उनका अनुसरण करने लगा।

उनका अध्यात्म : केवल पत्तों को पानी देने से वृक्ष हरा नहीं होता है, ज़ड़ों को सींचना बेहद जरूरी है। तभी वृक्ष हरा होता है। ठीक इसी तरह से मनुष्य में मन का काम शक्ति लेना है और शक्ति को अपने आचरण में शामिल करना है। मन में रस नहीं है तो शक्ति और सामर्थ्य नहीं होगा। उत्साह और तेज नहीं तो आचरण नीरस और शून्य हो जाएगा।

मन को रस कैसे मिले यह बड़ा सवाल है। मन को रस ध्यान से मिलता है। यह आनंद की तलाश है। आनंद को लगातार ढूँढते रहने की प्रक्रिया ही ध्यान है। परंतु ध्यान कैसा हो?

ध्यान के तरीके : वे कहते थे प्रातः और सायं दो बार 15 से 20 मिनट का ध्यान किया जाना चाहिए। ध्यान के लिए वे मंत्र भी देते थे। मंत्र जाप में साधक की चार श्रेणियाँ आती हैं। पहली बैखरी, दूसरी मध्यमा, तीसरी पश्यंती और चौथी परा।

जीवन परिचय : राजधानी से करीब 75 किमी दूर गरियाबंद रोड पर स्थित ग्राम पाण्डुका के एक कच्चे मकान में 12 जनवरी 1917 को महर्षि महेश योगी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम श्री महेश वर्मा था।

1958 में महर्षि महेश योगी ने पहली बार विदेश यात्रा की और मानव के विकास की शिक्षा उन्होंने सिखाना शुरू की। वैदिक साहित्य के सभी पहलुओं पर जोर देते हुए उन्होंने पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया। विशेष रूप से पश्चिम में।

1990 से महर्षि द नीदरलैंड स्थित अपने आवास व्लोड्राप से ही पूरी दुनिया में अध्यात्म का प्रसार करते थे। अपने सेवानिवृत्त होने पर उन्होंने कहा था कि मैंने अपना काम कर दिया, जो मुझे मेरे गुरुदेव ने दिया था।

ब्रह्मलीन : 6 फरवरी 2008 को 91 वर्ष की आयु में नीदरलैंड में महर्षि की मृत्यु की सूचना मिली तो आश्रम में माहौल शोकाकुल हो गया। 11 फरवरी को प्रयाग इलाहाबाद में महर्षि महेश योगी का अंतिम संस्कार किया गया।

जबलपुर में शिक्षा : महर्षि महेश योगी के पिता रेवेन्यू विभाग में आरआई थे। महर्षि जब छोटे थे, तभी उनके पिता का तबादला पाण्डुका से गाडरवाड़ा जबलपुर हो गया था। वहीं महर्षि ने शिक्षा प्राप्त की।

अध्यात्म पथ के अपने दूसरे हमसफर और लगभग हम उम्र जबलपुर के ही आचार्य रजनीश से नितांत उलट उन्होंने योरप के विभिन्ना देशों में योग की, विशेषकर सिद्धियों की कक्षाएँ खोलीं, उनसे प्राप्त धन से वहाँ भारतीय औषधियों के कारखाने और उनकी बिक्री से हासिल आर्थिक हौसले से भारत में सैकड़ों स्कूल खोले। जहाँ आज भी वेदांत की शिक्षा देते हैं। जबलपुर के पास सिहोरा में वे दुनिया की सबसे बड़ी इमारत बना रहे थे, जो सुरक्षा कारणों से आज भी अपने निर्माण के अधबीच में है।

महर्षि के आश्रम : भारत में आंध्रप्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, नेपाल, असम और दूसरे राज्यों के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड आदि अनेक जगहों पर उनके आश्रम है जहाँ वैदिक और आधुनिक शिक्षा के अलावा ध्यान और योग की शिक्षा दी जाती है। कहा जाता है कि दुनिया भर में उनके 60 लाख शिष्य है।

बीटल्स का समर्पण : अपने दौर का ख्यात म्युजिक ग्रुप बीटल्स 1968 में उनकी शरण में चला गया। जबकि पूरी दुनिया बीटल्स की दीवानी थी। भावातीत ध्यान में प्रशिक्षित होने के लिए बीटल्स ग्रुप भारत आया था। इसके बाद उन्होंने जो गीत लिखा था, वह महर्षि द्वारा बताई गई कहानियों पर आधारित था।

1975 तक आते-आते पश्चिमी दुनिया में उनका भावातीत ध्यान इतना लोकप्रिय हुआ था कि 13 अक्टूबर 19754 को टाइम पत्रिका ने अपने कवर पेज पर महर्षि महेश योगी चित्र सहित कवर स्टोरी छापी थी। शीर्षक था- 'ध्यान सारी समस्याओं का जवाब'।

साभार : नईदुनिया

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