जैन पर्युषण पर्व पर उत्कृष्ट हिन्दी निबंध

WD Feature Desk

गुरुवार, 21 अगस्त 2025 (11:55 IST)
Paryushan Mahaparva Essay : पर्युषण महापर्व, जैन धर्म का वह पवित्र स्तंभ है, जो हर वर्ष अपने अनुयायियों को आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करता है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्म-निरीक्षण, तपस्या और क्षमा का एक गहन अभियान है, जिसका उद्देश्य आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर उसे अपनी वास्तविक प्रकृति के करीब लाना है।ALSO READ: पर्युषण महापर्व 2025 के शुभ अवसर पर अपनों को भेजें ये 10 शुभकामना संदेश
 
पर्युषण का आध्यात्मिक सार: पर्युषण शब्द 'परि' और 'उषण' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है 'पवित्रता के समीप रहना'। यह आठ दिवसीय पर्व श्वेतांबर जैनियों तथा दस दिवसीय पर्व पर्युषण/ दसलक्षण महापर्व को अपने बाहरी जीवन की भाग-दौड़ से निकालकर, अपनी अंतरात्मा में झांकने का अवसर देता है।

इस दौरान, श्रद्धालु अपने मन, वचन और कर्म की पवित्रता पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हैं। पर्युषण हमें सिखाता है कि जीवन की असली खुशी भौतिक सुखों में नहीं, बल्कि मन की शांति और आत्मा की निर्मलता में निहित है।
 
तपस्या, स्वाध्याय और ध्यान का महत्व: पर्युषण के आठ दिनों में, जैन समाज के लोग कठोर नियमों का पालन करते हैं। ये नियम पंच महाव्रतों- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को और भी अधिक गहराई से अपनाने का अवसर देते हैं। इस दौरान उपवास निर्जला, एकासन, आयंबिल आदि का विशेष महत्व है, क्योंकि यह शरीर पर नियंत्रण स्थापित करने और इच्छाओं को शांत करने का एक शक्तिशाली तरीका है।
 
इसके साथ ही, स्वाध्याय यानी धर्मग्रंथों का अध्ययन और ध्यान को दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बना लिया जाता है। मंदिरों और धार्मिक स्थलों में साधु-साध्वी पवित्र जैन ग्रंथों, विशेषकर कल्पसूत्र, का पाठ करते हैं, जिसमें भगवान महावीर के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन है। यह ज्ञान आत्मा को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
 
समापन: संवत्सरी और क्षमावाणी: श्वेतांबर जैन पर्युषण का समापन संवत्सरी महापर्व के साथ होता है, जिसे जैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। यह दिन दिगंबर जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व के रूप में जाना जाता है, जब हर जैन दूसरे से 'मिच्छामि दुक्कड़म्' और 'उत्तम क्षमा' कहकर मांफी मांगता है। इस प्राकृत शब्द का अर्थ है, 'मेरे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी बुरे कर्मों के लिए मुझे क्षमा करें।'

यह परंपरा केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह मन से सभी वैर-भाव, क्रोध, और ईर्ष्या को पूर्ण रूप से निकालने की एक आध्यात्मिक क्रिया है। संवत्सरी हमें सिखाती है कि क्षमा करना और क्षमा मांगना दोनों ही आत्मा की प्रगति के लिए आवश्यक हैं। जब तक मन में किसी के प्रति द्वेष होता है, तब तक आत्मा का शुद्ध होना असंभव है।
 
निष्कर्ष: पर्युषण महापर्व केवल एक वार्षिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन को एक नई दिशा देने वाला एक आध्यात्मिक पुनर्जन्म है। यह हमें सिखाता है कि क्षमा, दया और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से ही हम एक सुखी और सार्थक जीवन जी सकते हैं। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन का असली सार बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि अपने भीतर की यात्रा में छिपा है।
 
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