योग और धर्म में है बहुत फर्क

अनिरुद्ध जोशी
योग शरीर और मन को साधने की एक प्रक्रिया है। वेदों के छह अंगों में से एक है योग। मूलत: योग का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में ही हुआ है लेकिन यह विद्या वेद के लिखे जाने से 15000 ईसा पूर्व के पहले से ही प्रचलन में थी, क्योंकि वेदों की वाचिक परंपरा हजारों वर्ष से चली आ रही थी। अत: वेद विद्या उतनी ही प्राचीन है जितना प्राचीन ज्योतिष या सिंधु सरस्वती सभ्यता है।
 
 
यही कारण रहा है कि योग का प्रत्येक धर्मों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। बहुत से धर्मों ने योग के अंगों को किसी ना किसी रूप में अपने में शामिल किया है। चूंकि योग प्राचीनकाल से प्रचलन में था इसलिए प्रत्येक धर्म ने उसकी कुछ स्टेप्स को अपनी प्रार्थना में शामिल किया है। यह हो सकता है कि जानकर हो या अनजाने में हो या फिर स्थानीय प्रचलन के प्रभाववश हो, लेकिन यह है योग ही, क्योंकि योग का व्यापक प्राचार प्रसार प्राचीनकाल में ही संपूर्ण धरती पर हो चुका था।
 
 
'योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक सीधा विज्ञान है। प्रायोगिक विज्ञान है। योग है जीवन जीने की कला। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। एक पूर्ण मार्ग है-राजपथ। दरअसल धर्म लोगों को खूँटे से बाँधता है और योग सभी तरह के खूँटों से मुक्ति का मार्ग बताता है।'-ओशो
 
 
धर्म सिखाता विश्‍वास और योग सिखाता खोज:-
धर्म हमें विश्‍वास, आस्था, प्रार्थना और नियम देता है, लेकिन योग हमें तन और मन की सेहत के साथ ही अभ्यास, अनुभव, संदेह, जागरण और प्रयोग के महत्व को बताता है। जो कि भी व्यक्ति कट्टर धार्मिक है उसे योग समझ में नहीं आएगा, क्योंकि योग आपको बंधे बंधाए उत्तर नहीं देता बल्कि कहता है कि यह करोगे तो यह होगा।
 
 
योग दो दुनी चार की तरह है। यह विशुद्ध गणिक और विज्ञान है। योग विश्वास करना नहीं सिखाता और न ही संदेह करना। और विश्‍वास तथा संदेह के बीच की अवस्था संशय के तो योग बहुत ही खिलाफ है। योग कहता है कि आपमें जानने की क्षमता है, इसका उपयोग करो।
 
 
योग न ईश्वरवादी और न अनिश्वरवादी:-
धर्म के सत्य, मनोविज्ञान और विज्ञान का सुव्यवस्थित रूप है योग। योग की धारणा ईश्‍वर के प्रति आपमें भय उत्पन्न नहीं करती और ना ही वह ईश्‍वर से प्रेम करने का कहती है। वह ईश्‍वर है या नहीं इसे जानने या खोजने को कहती है।
 
 
योग ईश्वरवाद और अनिश्वरवाद की तार्किक बहस में नहीं पड़ता वह इसे विकल्प ज्ञान मानता है, अर्थात मिथ्याज्ञान। योग को ईश्वर के होने या नहीं होने से कोई मतलब नहीं किंतु यदि किसी काल्पनिक ईश्वर की प्रार्थना करने से मन और शरीर में शांति मिलती है तो इसमें क्या बुराई है। इसीलिए योग में ईश्‍वरप्राणिधान नामक नियम का एक अंग है।
 
 
योग है समस्याओं का समाधान:-
योग की धारणा, जब आप दुःखी होते हैं तो उसके कारण को समझकर उसके निदान की चर्चा करती है। योग पूरी तरह आपके जीवन को स्वस्थ और शांतिपूर्ण बनाए रखने का एक सरल मार्ग है। यदि आप स्वस्थ और शांतिपूर्ण रहेंगे तो आपके जीवन में धर्म की बेवकूफियों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी।
 
 
योग एक ऐसा मार्ग है जो विज्ञान और धर्म के बीच से निकलता है वह दोनों में ही संतुलन बनाकर चलता है। योग के लिए महत्वपूर्ण है मनुष्य और मोक्ष। मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना विज्ञान और मनोविज्ञान का कार्य है और मनुष्य के लिए मोक्ष का मार्ग बताना धर्म का कार्य है किंतु योग यह दोनों ही कार्य अच्छे से करना जानता है इसलिए योग एक विज्ञान भी है और धर्म भी।
 
 
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:-
जिनके मस्तिष्क में द्वंद्व है, वह हमेशा चिंता, भय और संशय में ही ‍जीते रहते हैं। उन्हें जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है, आनंद नहीं। योग से समस्त तरह की चित्तवृत्तियों का निरोध होता है- योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। चित्त अर्थात बुद्धि, अहंकार और मन नामक वृत्ति के क्रियाकलापों से बनने वाला अंत:करण। चाहें तो इसे अचेतन मन कह सकते हैं, लेकिन यह अंत:करण इससे भी सूक्ष्म माना गया है।
 
 
दुनिया के सारे धर्म इस चित्त पर ही कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तरह-तरह के नियम, क्रिया कांड, ग्रह-नक्षत्र और ईश्वर के प्रति भय को उत्पन्न कर लोगों को अपने-अपने धर्म से जकड़े रखा है। पतंजलि कहते हैं कि इस चित्त को ही खत्म करो।
 
 
अंत में योग कहता है कि आपको ईश्वर को जानना है, सत्य को जानना है, सिद्धियाँ प्राप्त करना हैं या कि सिर्फ स्वस्थ रहना है, तो पतंजलि कहते हैं कि शुरुआत शरीर के तल से ही करना होगी। शरीर को बदलो मन बदलेगा। मन बदलेगा तो बुद्धि बदलेगी। बुद्धि बदलेगी तो आत्मा स्वत: ही स्वस्थ हो जाएगी। आत्मा तो स्वस्थ है ही। एक स्वस्थ आत्मचित्त ही समाधि को उपलब्ध हो सकता है।
 
 
अत: शरीर और मन का दमन नहीं करना है, बल्कि इसका रूपांतर करना है। इसके रूपांतर से ही जीवन में बदलाव आएगा। यदि आपको लगता है कि मैं अपनी आदतों को नहीं छोड़ पा रहा हूं, जिनसे कि मैं परेशान हूं तो चिंता मत करो। उन आदतों में एक 'योग' को और शामिल कर लो और बिलकुल लगे रहो। आप न चाहेंगे तब भी परिणाम सामने आएंगे।
 

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