Rae Bareli: नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली, जहां इंदिरा गांधी को भी झेलनी पड़ी थी हार

History of Rae Bareli parliamentary seat: वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा जाने के फैसले के साथ ही यह साफ हो गया है कि इस बार उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार कोई नया चेहरा ही होगा। ऐसा भी माना जा रहा है कि गांधी परिवार की इस परंपरागत सीट पर प्रियंका गांधी को लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
 
पिछली बार अमेठी सीट गंवाने वाली कांग्रेस के लिए रायबरेली में भी मुकाबला इस बार आसान नहीं होगा। भाजपा यहां से अदिति सिंह को चुनाव लड़ा सकती है। विदेश में पढ़ी-लिखीं अदिति का राजनीतिक करियर कांग्रेस से ही शुरू हुआ था, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अदिति भाजपा में शामिल हो गईं। इस समय अदिति रायबरेली से ही विधायक हैं। 
 
जब रायबरेली में इंदिरा की हार हुई : यूं तो यह सीट पहले चुनाव यानी 1952 से ही गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट रही है, लेकिन बावजूद इसके इस सीट पर आपातकाल के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी को भी हार का सामना करना पड़ा था। 1977 में जनता पार्टी के राजनारायण ने इंदिरा गांधी को 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हराया था। सबसे पहले इस सीट पर 1952 में श्रीमती गांधी के पति फिरोज गांधी सांसद बने थे, जो 1962 तक इस सीट पर सांसद रहे।
 
इस सीट पर 1962 आरपी सिंह सांसद बने। 1967 में एक बार फिर गांधी परिवार की एंट्री हुई। चौथी लोकसभा यानी 1967 में इंदिरा गांधी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं। उन्होंने 10 साल तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन, आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में उन्हें राजनारायण से हार का सामना करना पड़ा। राजनारायण इस सीट पर पहली बार गैर कांग्रेसी सांसद बने। इसके बाद इस सीट पर इंदिरा गांधी की वापसी नहीं हुई। 
 
शीला कौल 16 साल रहीं सांसद : सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में हुए चुनाव में फिर गांधी-नेहरू परिवार की शीला कौल की एंट्री हुई। कौल इस सीट पर 1980 से 1996 तक सांसद रहीं। फिर दो बार इस सीट से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने इस सीट पर प्रतिनिधित्व किया। 1998 में एक बार फिर यह सीट गांधी परिवार के हाथ से निकली। तब भाजपा के अशोक सिंह ने जनता दल के अशोक सिंह को 30 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। 1998 में एक बार ‍फिर भाजपा के अशोक सिंह 40 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते। इस चुनाव में कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी, जबकि सपा और बसपा उम्मीदवार क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे थे। 
सोनिया सबसे लंबे समय तक सांसद रहीं : सोनिया गांधी की इस सीट पर पहली बार तेरहवीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। इसके बाद वे लगातार चौदहवीं, पन्द्रहवीं, सोलहवीं और स‍त्रहवीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। 2009 में सोनिया गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 3 लाख 70 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इस चुनाव में भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी। लेकिन, 2019 आते-आते हार के अंतर कम होता गया। इस चुनाव में सोनिया गांधी 1 लाख 67 हजार वोटों से जीती थीं। 
 
हालांकि फिलहाल अटकलें ही हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ सकती हैं, लेकिन उम्मीद कौन होगा यह तो पार्टी की सूची सामने आने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन, एक बात तय है कि इस बार प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें या फिर कोई और कांग्रेस के लिए इस सीट पर मुकाबला आसान नहीं होगा। 

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