आजादी के बाद अयोध्या ने भी देखे हैं कई बदलाव, अब त्रेतायुगीन नगरी बनाने की तैयारी

हिंदुस्तान को आजाद हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। आजादी के बाद पूरे देश में काफी बदलाव हुए। रामनगरी अयोध्या भी इन बदलावों से अछूती नहीं रही। आचार्य सत्येन्द्र दास श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्‍य पुजारी हैं और दो दशकों से रामलला की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। विवादित ढांचा गिराने से भी पहले अयोध्या में समय-समय पर हुए परिवर्तनों के वे साक्षी रहे हैं। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में सत्येन्द्र दास ने अयोध्या को लेकर वेबदुनिया से खास बात की।   
 
वेबदुनिया से खास बातचीत करते हुए श्रीराम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने कहा कि अयोध्या में काफ़ी कुछ बदलाव हुआ। बहुत कुछ घटनाएं भी हुईं। इतिहास पर नजर डालें तो सन 1528 के बाद श्रीराम जन्मभूमि के लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिया और 1949 मे भगवान रामलला प्रकट हुए।
 
कोर्ट के आदेश से शुरू हुई पूजा-अर्चना : तब से कोर्ट के आदेश के बाद उनकी पूजा-अर्चना शुरू हुई और और तभी से विवादित ढांचा जिसे तथाकथित बाबरी मस्जिद कहा जाता रहा है, के लिए काफी संघर्ष हुआ। उसी में रामलला क़ी पूजा-अर्चना भी होती रही। 6 दिसंबर को ढांचे के गिर जाने के बाद से रामलला तिरपाल मे आ गए। 28 वर्षों तक उनकी पूजा तिरपाल में ही होती रही। 9 नवंबर 2019 में देश की सबसे बड़ी अदालत से राम मंदिर के आदेश के बाद रामलला अस्थायी मंदिर में विराजमान हो गए। तब से पूरे विधि-विधान से रामजी की पूजा-अर्चना चल रही है।
संघर्ष के 28 साल : विगत 28 वर्षों की बात करें तो यह पूरा काल बड़ा ही संघर्ष का रहा। रामलला तिरपाल मे सर्दी, गर्मी व बरसात सब कुछ झेलते रहे। बड़ी ही कठिनई का समय था। कोई कुछ कर भी नहीं सकता था क्योंकि बिना कोर्ट के आदेश के वहां एक पत्ता भी नहीं रखा जा सकता था, किन्तु अब अस्थायी मंदिर में ही रामलला की पूरी सुविधा के पूजा-अर्चना चल रही है। किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है, न ही किसी बात की कमी है। 
 
देखा जाए तो सम्पूर्ण अयोध्या नगरी में काफी बदलाव हुए। राम मंदिर के लिए काफी संघर्ष हुआ, गोलियां चलीं। बड़ी संख्या में रामभक्त शहीद हुए। हमें क्या पूरे हिन्दू जनमानस को कभी भी ऐसा नहीं लगा कि राम मंदिर आंदोलन कमजोर पड़ा हो। उसी का परिणाम सामने है। क्योंकि राम मंदिर आंदोलन के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने जिस तरह से एक मंच पर हमारे सभी संप्रदाय के साधु-संतों, धर्माचार्यों, शंकराचार्यों, धर्मगुरुओं के साथ-साथ संपूर्ण हिन्दू समाज को एक साथ लेकर जो आंदोलन किया, वह सबसे महत्वपूर्ण रहा है। इसमें संपूर्ण हिन्दू समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 
 
वर्ष 1992 में मेरी आंखों के सामने राम मंदिर के लिए जो घटना घटित हुई, उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। इसी आंदोलन में किस तरह से कारसेवकों पर गोलियां चलाई गईं। इस गोलीबारी में काफी रामभक्त मारे गए। वह बड़ा ही दर्दनाक समय था। भगवान के काम में लोगों ने बलिदान दिया। उसके बाद विवादित जब ढांचा कारसेवकों द्वारा गिराया जा रहा था, उस समय भी हड़कंप मचा हुआ था।
 
रामलला उसी ढांचे में विरजमान थे और यह सोचा जा रहा था कि उन्हें कहा ले जाया जाए, किन्तु उनके सिंहासन को वहां से हटाकर बाहर कर लिया गया। जब ढांचा गिर गया तब एक नीम के पेड़ के नीचे कारसेवकों ने लकड़ी का चबूतरा बनाकर उसी पर रामलला को सिंहासन सहित विराजमान कराया गया। राम मंदिर आंदोलन की यादगार घटना है, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
 
त्रेता युग के स्वरूप में दिखेगी अयोध्या : उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत अयोध्या में जो सबसे बड़ा बदलाव देखा जाएगा, वह भव्य और दिव्य रामलला का मंदिर होगा, जो शीघ्र ही बनकर तैयार होने वाला है। यह संपूर्ण विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। दूसरा, राम नगरी अयोध्या को त्रेता युग की अयोध्या जैसा रूप देने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। अयोध्या भारत में ही नहीं विदेशों में भी जानी जाती रही है और आगे भी जानी जाती रहेगी।

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