आधुनिक युग में क्रिकेट की सबसे बड़ी ताकत बनी टीम इंडिया, अविजित होना लक्ष्य

भारत का सबसे लोकप्रिय खेल अभी भी क्रिकेट बना हुआ है। इसकी लोकप्रियता के 2 मुख्य कारण है पहला आईपीएल और दूसरा मजबूत भारतीय टीम जो अब दुनिया के किसी भी कोने में जाकर जीत का परचम लहरा सकती है। नजर डालते हैं कि 75 साल में क्रिकेट का कैसा रहा सफर और यह आगे कितना बदल सकता है।

क्रिकेट का कल

भारत में किकेट करीब 18 वीं सदी में यूरोपीय नागरिकों द्वारा लाया गया था। पहला क्रिकेट क्लब 1792 में कोलकाता में स्थापित किया गया था। हालांकि राष्ट्रीय क्रिकेट टीम ने अपना पहला मैच लॉट्स में 25 जून 1932 को खेला।

क्रिकेट को समझने और परखने में भारतीय टीम को बहुत वक्त लगा। अपने पहले 50 सालों में टीम ने बहुत ही कमजोर प्रदर्शन किया। 196 टेस्ट में सिर्फ 35 बार भी भारतीय टीम जीत पाई।

सीके नायडू भारत के पहले टेस्ट कप्तान थे। भारत को अपनी पहली टेस्ट जीत के लिए करीब 20 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा।1952 में पाकिस्तान के खिलाफ लाला अमरनाथ की कप्तानी में भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच जीता।

हालांकि टीम कमजोर ही नजर आती रही। इस दौरान भारतीय क्रिकेट ने कई कप्तान देखे विजय हजारे वीनू मांग कर पंकज राय नारी कांट्रेक्टर लेकिन जीत इक्का दुक्का मौके पर ही मिलती रही।

मंसूर अली खान पटौदी की कप्तानी में भारत में आक्रमक क्रिकेट खेलने की शुरुआत की और इसके नतीजे भी मिले। पटौदी ने 1961 से लेकर 1974 तक कप्तानी करी और 9 टेस्टों में भारत को जीत दिलाई।

1970 के दशक में भारतीय टीम एक एक शक्तिशाली टीम बनकर उभरी। पटौदी की सफलता को वाडेकर आगे लेकर गए।हालांकि 1974 में खेले गए पहले दो विश्वकप में भारत का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। दो विश्व कप में भारत मैच एक में जीत सका।

1983 की विश्वकप जीत ने बदले समीकरण

लेकिन अगले विश्वकप में भारत ने वेस्टइंडीज जैसी मजबूत टीम को फाइनल में हराकर यह सुनिश्चित कर लिया की क्रिकेट सदियों तक भारत का सबसे लोकप्रिय खेल बनने वाला है।

कपिल देव की कप्तानी में जीते हुए इस विश्वकप के कारण अगली पीढ़ी क्रिकेट में दिलचस्पी दिखाने लग गई और क्रिकेट की दीवानगी एक अलग स्तर पर पहुंच गई।

90 के दशक में मिला सचिन जैसा वैश्विक सितारा

90 के दशक से पहले भारत को क्रिकेट का एक ऐसा सितारा मिला जिसका नाम आज भी विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में शुमार है।

90 का दशक पूरा का पूरा सचिन तेंदुलकर के नाम रहा हालांकि इस दौरान कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन रहे लेकिन सचिन की बल्लेबाजी ने पूरे विश्व को अपना दीवाना बना लिया।

आज भी वह टेस्ट मैच हो या वनडे, भारतीय टीम के लिए सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज है। टेस्ट और वनडे दोनों में सचिन विश्व में सर्वाधिक शतक लगा चुके हैं।

हालांकि सचिन की मौजूदगी के बावजूद भी 90 का दशक कुछ खास नहीं रहा। 99 का विश्व कप हारने के बाद सौरव गांगुली को कप्तानी सौंपी गई और भारत पहली बार एक अलग टीम के तौर पर दुनिया में देखा जाने लगा।

गांगुली की कप्तानी में आईसीसी ट्रॉफी तो ज्यादा नहीं आई लेकिन टीम के खिलाड़ी निर्भीक और आक्रमक क्रिकेट खेलने लग गए।

धोनी युग में भारत ने जीती आईसीसी ट्रॉफी

इसके बाद कप्तान बने महेंद्र सिंह धोनी ने तो जैसे क्रिकेट के नियम ही बदल दिए। उनकी कप्तानी में भारत साल 2007 का टी20 विश्व कप, साल 2011 का वनडे विश्व कप, और साल 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी जीता।

विराट कोहली की कप्तानी में भारत विश्व क्रिकेट का पावर हाउस बना। भारतीय टीम में एक से एक गेंदबाज और बल्लेबाज शामिल है। हर फॉर्मेट में भारत एक सशक्त टीम है।

भारत का इंडियन प्रीमियर लीग दुनिया की सबसे अमीर प्रीमियर लीग में से एक है। इसमें भाग लेने के लिए कई विदेशी खिलाड़ी अपनी राष्ट्रीय टीम का दौरा भी छोड़ देते हैं।

क्रिकेट का आज

आज के दौर में भारतीय क्रिकेट के पास सबसे अच्छा कोच राहुल द्रविड़ और सबसे बेहतरीन कप्तान रोहित शर्मा है।

कप्तानी को लेकर विराट कोहली और बीसीसीआई अध्यक्ष के बीच इस साल तनातनी बढ़ी जिससे टीम विवादों में आई। आईपीएल की बदौलत आज के दौर में भारत इतना विकसित हो गया है कि 2 देशों में 2 अलग अलग टीमें भेज सकता है।

यह पिछले साल श्रीलंका इंग्लैंड तो इस साल आयरलैंड और इंग्लैंड दौरे पर देखा गया। टीम के पास कमी है तो सिर्फ आईसीसी ट्रॉफी की जिसे देखे 9 साल हो गए।

भारतीय कोचों को भी मिलने लगा करार

एक दौर था जब विदेशी टीमें भारतीय कोचों से दूरी बनाकर रखती थी। अभी भी बड़ी टीमें विश्वास नहीं कर पाती लेकिन छोटी टीमों ने भरोसा करना शुरु किया है।नेपाल ने हाल ही में पूर्व भारतीय ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर को अपनी पुरुष राष्ट्रीय टीम का कोच बनाया है।

अभी के समय में प्रभाकर दूसरे ऐसे पूर्व भारतीय खिलाड़ी है जो किसी टीम के कोच बने हैं। जिम्बाब्वे टीम के कोच लालचंद राजपूत है जो टी-20 विश्वकप 2007 में विजेता भारतीय टीम के कोच और मैनेजर थे। इसके साथ ही 1983 की विजेता टीम के सदस्य संदीप पाटिल भी 90 के अंतिम दशक में केन्या टीम के कोच रह चुके हैं।

महिला क्रिकेट में दिलचस्पी बढ़ी, मिला राष्ट्रमंडल पदक

एक दौर था जब  महिला क्रिकेट में कोई मिताली राज के अलावा किसी दूसरे क्रिकेटर को नहीं जानता था। वह भी उनके 2002 में खेले दोहरे शतक की बदौलत। लेकिन पिछले 5 साल में महिला क्रिकेट की लोकप्रियता खासी बढ़ी है।

खासकर 2017 वनडे विश्वकप फाइनल के बाद, खिताब भारत से जरूर छूटा लेकिन महिला क्रिकेट भी दर्शक चाव से देखने लगे। अब तो महिला टीम राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक तक ले आई है।

टीम में फिलहाल एक ही दिक्कत लगती है कि बड़े मैच यानिक की फाइनल में टीम फिसल जाती है। हालांकि ज्यादातर मौकों पर टीम के सामने ऑस्ट्रेलिया रहती है जो बांग्लादेश या जिम्बाब्वे की पुरुष टीम को भी हरा सकती है।  

क्रिकेट का कल

क्रिकेट के कल पर जो सबसे बड़ा खतरा होगा वह होगा वनडे क्रिकेट पर। पूर्व से लेकर वर्तमान क्रिकेटरों का मानना है कि यह प्रारुप अब बोझिल होने लग गया है।

ऑलराउंडर बेन स्टोक्स ने हाल ही में अपने टेस्ट कप्तानी और टी20 क्रिकेट में खेलते रहने के लिए वनडे क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। उनके साथी मोईन का कहना है कि ऐसा क़दम कई और खिलाड़ी अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ले सकते हैं।

ऐसे में इस प्रारुप को देखने में दर्शकों की रुचि कम होगी। वैसे तो कुछ सालों पहले टेस्ट क्रिकेट का भविष्य भी संकट में था लेकिन आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप के शुरु होने के बाद यह बच गया है। हर टीम टेस्ट में बेस्ट होने की कोशिश कर रही है। भारत इसका पहला खिताबी मैच न्यूजीलैंड से पिछले साल हार गया था। लेकिन आगे कई अवसर मिलेंगे..

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