बिहार में बाहुबल के दम पर राजनीति में प्रवेश कर संसद की सीढ़ियों और विधान मंडल के गलियारों में अपनी धाक जमाने वाले कुछ राजनीतिज्ञों के लिए वर्ष 2007 अच्छा नहीं रहा।
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के राजनीतिज्ञों के लिए इस साल कभी खुशी कभी गम वाली स्थिति रही।
देश में शायद ही कभी किसी ने यह सोचा होगा कि किसी पूर्व सांसद को हत्या के मामले में फाँसी की भी सजा सुनाई जा सकती है। बिहार की न्यायपालिका ने इस मिथ को तोड़ दिया।
आनंद मोहन को फाँसी की सजा दिए जाने का फैसला संभवत: देश के न्यायिक इतिहास में लंबे समय तक याद किया जाएगा।
पटना के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश रामकृष्ण राय ने पूर्व सांसद आनंद मोहन को गोपालगंज जिले के जिलाधिकारी जी कृष्णैया को पाँच दिसंबर 1994 को पीट-पीट कर मार डालने के आरोप में इस वर्ष तीन अक्टूबर को फाँसी की सजा सुनाकर न्यायिक इतिहास कायम कर दिया।
आनंद मोहन के साथ-साथ पूर्व विधायक अखलाक अहमद और पूर्व विधायक अरुण कुमार को भी फाँसी की सजा सुनाई गई, जबकि आनंद मोहन की पत्नी और पूर्व विधायक लवली आनंद, जदयू के विधायक मुन्ना शुक्ला तथा दो अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
आनन्द मोहन पूरे देश में शायद ऐसे पहले पूर्व सांसद हैं जिन्हें अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है।
गत वर्ष राजद के प्रमुख नेता मुहम्मद शहाबुद्दीन के लिए भी अच्छा नहीं रहा। कभी सीवान जिले में जिन शहाबुद्दीन की तूती बोला करती थी।
उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश ज्ञानेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव ने भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण और संभावित हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
छोटे लाल का अपहरण सात फरवरी वर्ष 1999 को हुआ था और समझा जाता है कि फिर उनकी हत्या कर दी गई। शहाबुद्दीन को इसके साथ ही चार अन्य मामलों में भी सजा सुनाई गई। वे वर्तमान में सीवान की जेल में कैद हैं और उनकी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है।
विपक्षी नेताओं में बीते साल बुजुर्ग कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री आदित्यसिंह को छह जनवरी वर्ष 2006 को हुई एक मुखिया की हत्या के जुर्म में अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद सूरजभानसिंह को बेगूसराय जिले के सरकारी वकील रामनरेश शर्मा की हत्या के मामले में आरोपी बनाया गया है। हालाँकि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है और मामले की जाँच चल रही है।
सत्ताधारी जदयू के कुछ नेताओं के लिए भी वर्ष 2007 सुखद नहीं रहा। जदयू विधायक मुन्ना शुक्ला को जहाँ गोपालगंज जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई वहीं एक अन्य विधायक अनंतसिंह को पत्रकारों की पिटाई के मामले में जेल की हवा खानी पड़ी।
एक अन्य विधायक सुनील पांडेय को रोहतास जिले में एक व्यापारी से कथित रुप से रंगदारी माँगने के मामले में जेल जाना पड़ा। अभी भी वे विचाराधीन कैदी के रुप में बंद है। उनके खिलाफ जेल अधीक्षक को जान से मारने की धमकी देने की प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई।
बीता साल केन्द्रीय रेलमंत्री लालूप्रसाद और उनकी पत्नी तथा बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ीदेवी के लिए भी ठीक नहीं रहा। पटना उच्च न्यायालय ने बहुचर्चित चारा घोटाले से जुड़े ज्ञात स्रोतों से अधिक आय रखने के एक मामले में पति-पत्नी के खिलाफ राज्य सरकार की एक याचिका को विचार के योग्य बताया।
राज्य सरकार ने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति रखने के मामले में लालू-राबड़ी को सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषमुक्त किए जाने के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
लालू-राबड़ी को पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा। उच्चतम न्यायालय ने भी दोनों नेताओं को कोई राहत नहीं देते हुए कहा कि जब तक पटना उच्च न्यायालय राज्य सरकार की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकृत नहीं कर लेता तब तक उनकी याचिका कोई सुनवाई नहीं की जा सकती।