what is akhand bharat: 'अखंड भारत' – एक ऐसा शब्द जो समय-समय पर भारतीय राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में गूंजता रहता है। यह केवल एक भौगोलिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक विचार है। हाल ही में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने भी एक कार्यक्रम में इस विचार को 'आने वाले वर्षों में एक वास्तविकता' बताया, जिससे इस पर चर्चा फिर से तेज हो गई है। लेकिन, आखिर 'अखंड भारत' क्या है, और इतिहास की दृष्टि से इसके अस्तित्व की पूरी कहानी क्या है? आइए, इस विचार की जड़ों को गहराई से समझते हैं।
समझिए अखंड भारत का अर्थ
इतिहासकारों के अनुसार, 'अखंड भारत', जिसे 'अखंड हिंदुस्तान' भी कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण शब्द था। यह उस भौगोलिक क्षेत्र को संदर्भित करता था जो ब्रिटिश शासन से पहले और उसके दौरान एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत इकाई के रूप में देखा जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के विभाजन को रोकना और एक एकीकृत राष्ट्र की कल्पना करना था।
स्वंत्रता से पहले प्रसिद्ध साहित्यकार और राजनेता कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने 'अखंड हिंदुस्तान' की पुरजोर वकालत की थी, और महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भी इस विचार से सहमति व्यक्त की थी। गांधी जी का मानना था कि भारत का विभाजन एक कृत्रिम विभाजन होगा और यह देश की आत्मा के खिलाफ होगा।
सिर्फ़ हिंदू स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, मुस्लिम भी थे समर्थक
यह दिलचस्प बात है कि 'अखंड भारत' का विचार केवल हिंदू स्वतंत्रता सेनानियों तक ही सीमित नहीं था। सीमा पार के कई मुस्लिम बुद्धिजीवी और नेता भी इस अवधारणा के समर्थक थे। पाकिस्तानी समाजवादी बुद्धिजीवी और वरिष्ठ पत्रकार मज़हर अली खान ने अपनी लेखनी में इस बात का उल्लेख किया है कि खान बंधु (खान अब्दुल गफ्फार खान और डॉ. खान साहब), जो पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान में) के प्रमुख नेता थे, 'अखंड हिंदुस्तान' के लिए लड़ने के लिए दृढ़ थे। वे विभाजन के खिलाफ थे और एक संयुक्त भारत में विश्वास रखते थे, जहां सभी समुदायों के लोग सद्भाव से रह सकें। यह दर्शाता है कि विभाजन से पहले, एक बड़े वर्ग में एक एकीकृत भारत की भावना मौजूद थी।
जंबूद्वीप से आधुनिक राष्ट्र तक की यात्रा
इतिहास के अनुसार, 'अखंड भारत' की अवधारणा में वे सभी क्षेत्र शामिल थे जो प्राचीन काल से भारतीय सभ्यता के प्रभाव में रहे हैं। इसमें आधुनिक समय के कई देश, जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, म्यांमार (बर्मा), नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और तिब्बत शामिल थे
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जब प्राचीन 'जंबूद्वीप' का बंटवारा होकर भारत बना था, तो उसमें नेपाल और तिब्बत जैसे क्षेत्र सीधे तौर पर शामिल नहीं थे, लेकिन वे सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा माने जाते थे। 1947 से पहले के भारत के मानचित्र, जिनमें आधुनिक पाकिस्तान और बांग्लादेश राज्यों को ब्रिटिश भारत का हिस्सा दिखाया गया था, एक प्रारंभिक 'अखंड भारत' की सीमाओं को दर्शाते हैं। ये मानचित्र ब्रिटिश साम्राज्य के तहत एक प्रशासनिक इकाई के रूप में भारत के विशाल विस्तार को दिखाते हैं।
हिंदुत्व और एकता का वैचारिक आधार
'अखंड भारत' का निर्माण वैचारिक रूप से हिंदुत्व की अवधारणा और एकता के विचारों से भी जुड़ा है। हिंदुत्व के समर्थक इस विचार को भारत की प्राचीन सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत की पुनर्स्थापना के रूप में देखते हैं। उनके लिए यह केवल एक राजनीतिक सीमा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है, जहां भारतीय उपमहाद्वीप के सभी लोग एक साझा विरासत से जुड़े हुए हैं। यह विचार 'एक राष्ट्र, एक संस्कृति' की भावना को बढ़ावा देता है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।