Dharamraj ji ki aarti: कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी यानी नरक चतुर्दशी और इसी माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया यानी यम के द्वितीया भाई दूज साथ ही वट सावित्री व्रत के दौरान भी यमराज यानी धर्मराज की पूजा के बाद आरती होती है।
यमराज जी की आरती | Yamraj ji ki aarti
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हूं तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।
धर्मलोक के तुम हो स्वामी श्री यमराज कहलाते हो।
जो जो प्राणी कर्म करते तुम सब लिखते जाते हो।
अंत समय में तुम सबको दूत भेज बुलवाते हो।
पाप पुण्य का सारा लेखा उनको बांच सुनाते हो।
भुगताते हो प्राणी को तुम लख चौरासी की फेरी से।
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु में शरणागत हु तेरी।
पड़ी नव मंज धार भवन में पार करो ना करो देरी।।-1।।
चित्रगुप्त है लेखक तुम्हारे फुर्ती से तो लिखने वाले।