साठ के दशक में गैर-सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कुछ नौजवानों ने, जो स्वयं को 'बॉक्सवाला' कहते थे, एक नाटक मंडली कायम की- 'द ऍमेचर्स।' अधिकारी-वर्ग के इन नौजवानों की विदेशी नाटकों में दिलचस्पी थी। उस समय कलकत्ता में 'द ड्रामेटिक क्लब' नामक एक अन्य नाटक मंडली भी अँगरेजी नाटक खेलती थी, लेकिन उसमें किसी भारतीय का प्रवेश-निषिद्ध था। द ऍमेचर्स क्लब इसी का प्रतिकार था। दिसंबर 1960 में जन्मी इस नाटक मंडली के काम की शुरुआत धीमी रही, लेकिन अगले वर्ष इसके दो नाटकों (ऑर्थर मिलर का 'ए व्यू फ्रॉम द ब्रिज' और शेक्सपीयर के 'जूलियस-सीजर' ने तहलका मचा दिया।