समुद्र विज्ञान मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) एक स्वायत्त संस्थान है, जिसकी स्थापना समुद्र ऊर्जा, गहरे समुद्र की प्रौद्योगिकी और समुद्री खनन, तटीय व पर्यावरणीय इंजीनियरी और समुद्री यांत्रिकी के क्षेत्र में परियोजना व विकास के लिए हुई। संस्थान की गतिविधियों में से एक है, कम ताप पर तापीय विलवणीकरण प्रक्रिया से समुद्री जल से पेयजल प्राप्त करना।
नदियों का पानी पर्याप्त नहीं है, इसलिए वैज्ञानिक अब समुद्री जल के इस्तेमाल का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन समुद्री पानी खारा होता है। फिलहाल इस खारेपन को दूर करने के लिए आसवन विपरीत ऑस्मोसिस और इलेक्ट्रो डायलिसिस का उपयोग किया जाता है। भारत की जरूरतों को देखते हुए दो तरह की विलवणीकरण संयंत्र विकसित किए गए हैं। समुद्र तट से दूर/भूमि आधारित संयंत्र लक्ष्यद्वीप के लिए उपयुक्त हैं, जबकि तट से दूर के संयंत्र देश के मुख्य भू-भाग के लिए ठीक हैं। लक्ष्यद्वीप छोटे द्वीप हैं, जिनमें मीठे पानी के स्रोत तालाब-नदियाँ आदि नहीं हैं। वहाँ वर्षा का पानी ही इस्तेमाल किया जाता है। नलकूप के पानी में अक्सर समुद्री पानी मिला होता है। इसलिए विलवणीकरण वहाँ के लोगों के लिए अच्छा विकल्प है।
भूमि आधारित संयंत्र एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला एक संयंत्र मई 2005 में कावारत्ती में लगाया गया था। इसे एनआईओटी ने विकसित किया। इससे वहाँ के लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया। अब तक यह 9 करोड़ लीटर से भी ज्यादा पानी साफ कर चुका है और कई बार उत्पादन इसकी निर्धारित क्षमता से ज्यादा भी हो जाता है। इसके कारण कावारत्ती में पानी से होने वाली बीमारियाँ, खासतौर पर बच्चों को, घटकर 10 फीसद से भी कम रह गई हैं। साथ ही कावारत्ती के समुद्रतटों पर सजावटी मछलियाँ पैदा हो रही हैं, जिससे यहाँ नई समुद्री पारिस्थितिकी व्यवस्था विकसित हो रही है। इससे यहाँ पर्यटन उद्योग को लाभ हुआ है।
समुद्र तट से दूर संयंत्र अप्रैल 2007 में 10 लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला देश में ही बना एक संयंत्र चेन्नई से कोई 40 किमी दूर लगाया गया। प्रयोग के तौर पर लगे इस संयंत्र को लगातार कई हफ्तों तक सफलतापूर्वक चलाया गया।
समुद्र में खनन भारत पहला देश है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 1987 में समुद्र के भीतर के संसाधनों की खोज और उपयोग के लिए मध्य हिन्दमहासागर में खनन की अनुमति दी। भारतीय वैज्ञानिकों ने रूसी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर 5200 मीटर समुद्रतल के पास जाने वाले लवणों की पहचान का उपकरण विकसित किया है। साथ ही रूस के साथ,6000 मीटर की गहराई पर काम करने वाले रिमोट चालित वाहन के विकास की परियोजना पर काम चल रहा है।
200 मीटर गहराई वाले प्रायोगिक उपकरण को जाँचा जा चुका है, इसे पूरी तरह भारत में बनाया गया है। इस तरह भारत कुछ चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जो समुद्र में खनन कर सकते हैं। भारत को 2007 से पाँच साल के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण (आईएसए) के विधिक व तकनीकी आयोग का सदस्य चुना गया है।