सन 2008 की मैन बुकर प्राइज की विजेता द व्हाइट टाइगर अरविंद अडिगा का पहला उपन्यास है। यह वर्तमान भारत का वास्तविक चित्रण है। यह कहानी है बलराम हलवाई की, जो गरीबी में पला जरूर है, पर सपने देखना उसे आते हैं और इन्हें पूरा करने का हौसला ही उसे मंजिल तक पहुँचाता है। चीन के प्रीमियर के भारत आने पर बलराम उन्हें खत लिखकर, गाँव में रहने वाले मुन्ना से जंगल में एक पीढ़ी में एक बार जन्म लेने वाले व्हाइट टाइगर बनने तक के अपने सफर को बयान करता है। यह सफर जहाँ गाँव की खुशबू लिए हुए है, वहीं शहर की प्रदूषित मानसिकता को भी दर्शाता है।
मुन्ना गाँव छोड़कर दिल्ली आता है और अपने ही गाँव के अशोक के यहाँ ड्राइवर बन जाता है। अशोक और उसकी पत्नी आपसी तनाव में डूबे नज़र आते हैं। साथ ही वह भ्रष्ट भारत के स्वरूप से परिचय करवाता है। बलराम परिचय देता है उस इंसानी रूप का, जो कामयाबी पाने के खून से भी खेल सकता है। हालत का ताना-बाना कुछ यूँ बुना जाता है कि वह पाठक की सहानुभूति पाने में कामयाब रहता है। इस देश में पैसा वो खुदा है, जो किसी भी गुनाह से आपको बाइज्जत मुक्त कर सकता है और इस बात को सटीक ढंग से दर्शाया है। महत्वाकांक्षाओं की आड़ में छिपे इंसानों के काले करतूतों पर लगे शराफत के मुखौटे को भी बेनकाब करता यह उपन्यास सच में प्रशंसनीय है।