दिन उगते ही अखबार वाला हमेशा की तरह अखबार फेंककर चला गया। देखते ही लॉन में बैठे घर के मालिक ने अपने हाथ की किताब को टेबल पर रखा और अखबार उठाकर पढ़ने लगा। चाय का स्वाद अखबार के समाचारों के साथ अधिक स्वादिष्ट लग रहा था। लंबे-चौड़े अखबार ने गर्वभरी मुस्कान के साथ छोटी-सी किताब को देखा, किताब ने चुपचाप आंखें झुका लीं।
घर के मालिक ने अखबार पढ़कर वहीं रख दिया, इतने में अंदर से घर की मालकिन आई और अखबार को पढ़ने लगी, उसने किताब की तरफ देखा भी नहीं। अखबार घर वालों का ऐसा व्यवहार देखकर फूलकर कुप्पा नहीं समा रहा था। हवा से हल्की धूल किताब पर गिरती जा रही थी।
किताब चुपचाप थी कि घर का मालिक आया और किताब से धूल झाड़कर उसे निर्धारित स्थान पर रख ही रहा था कि किताब को पास ही में से कुछ खाने की खुशबू आई, जो उसी अखबार के एक पृष्ठ में लपेटे हुए थी और घर का सबसे छोटा बच्चा अखबार के दूसरे पृष्ठ को फेंककर कह रहा था, 'दादाजी, इससे बनी नाव तो पानी में तैरती ही नहीं, डूब जाती है।'