तिलहन फसलों में सूरजमुखी एकमात्र ऐसी फसल है, जिसे साल में तीन बार उगाया जा सकता है। इसकी संकुल व उन्नत किस्मों की उपज 600 से 800 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर होती है। सूरजमुखी की संकर (हाइब्रिड) किस्में प्रति हैक्टेयर सिंचित अवस्था में 1000 से 1500 किलोग्राम तक उपज देती हैं।
अगर साल में इनकी तीन फसलें ली जा सकें तो प्रतिदिन प्रति हैक्टेयर दो से चार किलोग्राम या प्रतिवर्ष प्रति हैक्टेयर लगभग 750 से 1500 किलोग्राम तक तेल मिलना संभव है। इसके तेल के उपयोग से ब्लडप्रेशर की आशंका नहीं या कम हो जाती है।
सूरजमुखी को बरसात में हल्की से मध्यम प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है। खेत में पानी का रुकना इस फसल के लिए हानिकारक होता है। सूरजमुखी का पौधा एक मौसमी पौधा है। इसकी उन्नत व संकुल किस्मों की अपेक्षा संकर किस्में लगभग डेढ़ से दो गुनी तक उपज देती पाई गई हैं।
उन्नत व संकुल किस्मों को बिना सिंचाई के खरीफ में और सीमित सिंचाई के साथ जायद में लगाया जा सकता है। परंतु संकर किस्मों को हमेशा सिंचित क्षेत्र में ही लगाया जाना चाहिए। इनकी पोषक तत्व की जरूरत भी सामान्य उन्नत किस्मों की अपेक्षा डेढ़ से दो गुना तक होती है।
बीज का छिलका मोटा होता है। इसे बोने के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। रबी व जायद की बोवनी, पलेवा (बुवाई पूर्व सिंचाई) करके की जानी चाहिए। फसल बोने के पाँच-सात दिन पहले 50-60 क्विंटल गोबर खाद या कंपोस्ट डालकर मिट्टी के साथ मिलाएँ।
इसके बाद बोते समय उन्नत व संकुल किस्मों में 20 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा स्फुर, 20 किग्रा पोटाश व 30 किग्रा गंधक बीज के नीचे रासायनिक खाद के रूप में बोएँ। संकर किस्मों में 40 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा स्फुर, 40 किग्रा पोटाश व 30 किग्रा गंधक बीज के नीचे कतारों में बोएँ। इसके 25-30 दिन बाद उन्नत किस्मों में 20 किग्रा नत्रजन तथा संकर किस्मों में 40 किग्रा नत्रजन यूरिया खाद द्वारा फसल की दो कतारों के बीच डालकर गुड़ाई द्वारा मिट्टी के साथ मिलाएँ।
इसकी उन्नत किस्में ये हैं- मार्डेन, ईसी-68414, ईसी-68415, सूर्या, को-1, को-2, एसएस-56, केबीएसएच-1, एमएसएफएच-8, एमएसएफएच-17, एमएसएच-30, दिव्य मुखी, बादशाह आदि। इनके अलावा अनेक निजी कंपनियों द्वारा विकसित किस्में भी उपलब्ध हैं।
सूरजमुखी की उन्नत व संकुल किस्मों के 10 से 12 किग्रा बीज व संकर किस्मों के 6 से 7 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है। इन्हें ट्राइकोडर्मा विरिडि (प्रोटेक्ट) उपचारित करके बोएँ। ये एक जैविक फफूँद नाशक है। इससे अंकुरण के समय रोग लगने की आशंका कम रहती है।
रबी फसल में अंकुरण देर से होता है। इनमें जल्दी अंकुरण के लिए बीज को 12 घंटे पानी में भिगोकर रखें। इसके बाद 3-4 घंटे पानी को सूखने के लिए छाया में सुखाएँ। तत्पश्चात बोएँ। एक हैक्टेयर से उन्नत किस्म की 6 से 8 क्विं. व संकर किस्म की 10-12 क्विंटल उपज मिल जाती है।