शनि रत्न नीलम

- चंद्रशेखर नीम

सारे ब्रह्मांड में ऊर्जा शक्ति का मुख्य रूप है। मानव शरीर की आत्मा भी ऊर्जा रूप है। सूर्य से सात रंगों की किरणें निकलती हैं, जिसमें नीले रंग की किरणें शनि ग्रह की होती हैं। मानव शरीर में रक्त का रंग लाल होता है, रक्त संचालन से ही मानव की क्रियाशीलता दृष्टिगोचर होती है। आकाश मंडल में शुक्र यानी राहु आपस में मित्र हैं तथा सूर्य चन्द्र, मंगल, गुरू, केतु आपस में मित्र हैं, बुध ग्रह सूर्य के साथ ही रहता है।

वैसा ही स्वभाव प्रदर्शित करता है, सूर्य का रंग बैंगनी, चन्द्र का श्वेत, मंगल का लाल, गुरू का पीला, बुध का हरा, शुक्र का श्वेत-नीला, शनि का गहरा नीला, राहु का काला तथा केतु का रंग चितकबरा होता है। जब हम किसी भी ग्रह के रत्न को धारण करते हैं, तब आकाश मंडल से उन ग्रहों की शुभ किरणें धारण किए हुए रत्न के माध्यम से शरीर में पहुंचती हैं। इन किरणों का रक्त से मेल होता है। जन्मकुंडली में ग्रहों के सामंजस्य के अनुसार वह रत्न मानव के तंत्र को शुभ या अशुभ रूप में प्रभावित करता है या रत्न शास्त्र का विज्ञान।

नीलम रत्न शनि का रत्न है। शनि ग्रह की किरणें नीली होती हैं, जब किसी व्यक्ति पर विष का प्रभाव होता है, तब उस व्यक्ति का खून नीला पड़ जाता है अर्थात्‌ शनि ग्रह मंगल अर्थात्‌ रक्त की क्रियाशीलता को नष्ट करता है। सूर्य, मंगल, चन्द्र, गुरू आपस में मित्र हैं। अर्थात्‌ नीलम रत्न हर कोई नहीं पहन सकता। जिस व्यक्ति की पत्रिका में शनि शुभ ग्रह का स्वामी हो। शनि का जन्मांक में किसी अन्य शुभ ग्रहों अथवा शुभ भावेशों से प्रतियोग अथवा दृष्टि संबंध न हो साथ ही किसी विद्वान व्यक्ति की देखरेख हो तभी व्यक्ति को नीलम धारण करना चाहिए। यह कुरुन्दम वर्ग का रत्न माना जाता है।

एल्युमिनियम आक्साइड और कुरुन्दम के संयोग से इसकी सृष्टि होती है। यह कश्मीर में पाया जाता है। कश्मीरी नीलम अतिश्रेष्ठ माना जाता है। चीन, अमेरिका, थाइलैंड, जावा, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और काबुल के पास भी पाया जाता है। अंग्रेजी में इसे 'सेफायर' कहते हैं। बहुत कम समय में यह शुभ अशुभ-प्रभाव दिखा देता है। इसे मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में रखा जाता है। शनि के उपरत्न कटहला काकानीली होते हैं। इन्हें नीलम के स्थान पर पहना जा सकता है। जन्मांक में निम्न ग्रह स्थितियों में नीलम धारण करना चाहिए।

* शनि ग्रह का सूर्य, चन्द्र, मंगल से युति अथवा दृष्टि संबंध होने पर व्यक्ति को नीलम नहीं धारण करना चाहिए।

* जन्मांक में शनि, गुरू का नवपंचम योग है तथा शनि का ग्रह अन्य किसी ग्रह से प्रतियोग नहीं तब नीलम धारण करने पर विचार करना चाहिए।

* शनि ग्रह शुभ भावों का स्वामी हो तथा निर्बल स्थिति में हो, तब किसी विद्वान व्यक्ति की सलाह से नीलम रत्न पहनना चाहिए।

विभिन्न लग्नों में नीलम का प्रभाव
मेष लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह दशम (कर्मक्षेत्र) तथा लाभ (एकादश) जैसे दो शुभ भावों का स्वामी होकर व्यक्ति के जीवन में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि व्यक्ति का पिता पक्ष कर्मक्षेत्र तथा लाभ व्यक्ति के जीवन में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जन्मांक में शनि ग्रह का सूर्य, चन्द्र, मंगल एवं गुरू से दृष्टि संबंध न होने पर व्यक्ति को नीलम रत्न धारण अवश्य करना चाहिए। इसके द्वारा कर्मक्षेत्र में लाभ, मान-सम्मान में वृद्धि होती है। अतः इस लग्न के व्यक्तियों को किसी विद्वान ज्योतिष द्वारा सलाह लेकर नीलम पहनने के संबंध में अवश्य जानना चाहिए।

वृषभ लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह भाग्य व दशम भाव का स्वामी होकर पूर्णतः कारक ग्रह की भूमिका निभाता है। इस लग्न के व्यक्ति को नीलम अवश्य धारण करना चाहिए। जन्मांक में निर्बल स्थिति में शनि होने पर नीलम धारण करने से व्यक्ति को भाग्य व कर्मक्षेत्र संबंधी श्रेष्ठ सफलता प्राप्त होती है।

मिथुन लग्न : इस लग्न के लिए शनि भाग्येश व अष्टमेष होता है। अतः इस लग्न के जातक को नीलम अवश्य पहनना चाहिए। यदि जन्मांक में शनि ग्रह की दृष्टि बुध, शुक्र, गुरू, चन्द्र ग्रह पर हो तब शनि रत्न नीलम धारण करने से पूर्व किसी विद्वान ज्योतिष से सलाह अवश्य लेना चाहिए।

कर्क लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह सप्तम तथा अष्टम भाव जैसे अकारक भावों का अधिपति होकर लग्नेश चन्द्र ग्रह का शत्रु होता है। अतः इस लग्न के व्यक्ति को नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए।

सिंह लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह सप्तमेष तथा षष्टेश होकर दो अकारक भावों का स्वामी होता है। अतः इस लग्न के व्यक्ति को नीलम धारण करने से बचना चाहिए।

कन्या लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह पंचम जैसे शुभ तथा षष्ठ जैसे अशुभ भावों का अधिपति होता है। यदि जन्मांक में मंगल, सूर्य जैसे ग्रह शनि की दृष्टि में हों, तब व्यक्ति को नीलम धारण करना चाहिए।

तुला लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह सुख के पंचम भाव का स्वामी होकर अत्यंत कारक ग्रह बन जाता है। अतः इस लग्न के जातक को नीलम अवश्य धारण करना चाहिए। नीलम इस लग्न के व्यक्ति को असाधारण सफलता देता है।

वृश्चिक लग्न : शनि इस लग्न के लिए सुख (पद) तथा पराक्रम स्थान का स्वामी होकर जातक के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चूंकि यह लग्नेश मंगल ग्रह का शत्रु है। अतः शनि ग्रह की सूर्य, चन्द्र, मंगल एवं गुरू पर दृष्टि या षडाष्टक योग होने पर जातक को शनि रत्न नीलम नहीं पहनना चाहिए। गुरू शनि का नवपंचम योग तथा अन्य ग्रहों से प्रतियोग न होने की स्थिति में जातक को विद्वान ज्योतिष से सलाह लेने के पश्चात नीलम धारण करना चाहिए।

धनु लग्न : इस लग्न के लिए शनि रत्न नीलम लग्न का शत्रु होकर द्वितीय तथा तृतीय जैसे अकारक भावों का स्वामी होता है। चूंकि यह ग्रह संचित धन से संबंध व षडाष्टक होने पर नीलम रत्न नहीं पहनना चाहिए। उपरोक्त स्थिति न होने पर शनि महादशा में शनि रत्न धारण किया जा सकता है।

मकर लग्न : इस लग्न के लिए शनि ग्रह लग्न तथा धन भाव का स्वामी होकर परमकारक ग्रह होता है। अतः इस लग्न के व्यक्ति को नीलम अवश्य धारण करना चाहिए।

कुंभ लग्न : इस लग्न के लिए शनि रत्न नीलम लग्न व व्यय का स्वामी होकर परमकारक ग्रह की भूमिका निभाता है। अतः इस लग्न के व्यक्ति को नीलम अवश्य पहनना चाहिए।

मीन लग्न : इस लग्न के लिए शनि लाभ तथा व्यय भाव का स्वामी होकर जन्मांक में अकारक ग्रह की भूमिका निभाता है। चूंकि शनि ग्रह लाभ भाव से संबंध रखता है। अतः किसी विद्वान ज्योतिष की सलाह तथा शनि का चन्द्र, मंगल, गुरू से प्रतियोग न होने पर ही शनि का रत्न धारण करना चाहिए।

नीलम रत्न चूंकि त्वरित परिणाम देने में सक्षम है। अतः किसी विद्वान ज्योतिष की सलाह के पश्चात्‌ ही इस रत्न को धारण करना चाहिए।

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