मृत्युंजय साधना एक ऐसी प्रक्रिया है जो कठिन कार्यों को सरल बनाने की क्षमता के साथ-साथ विशेष शक्ति भी प्रदान करती है। यह साधना श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक करनी चाहिए। इसके कुछ प्रमुख नियम तथा ध्यान रखने योग्य बातों का पालन किया जाना बेहद आवश्यक है।
* यह अनुष्ठान शुभ दिन, शुभ पर्व, शुभ काल अथवा शुभ मुहूर्त में संपन्न करना चाहिए।
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* मंत्रानुष्ठान प्रारंभ करते समय सामने भगवान शंकर का शक्ति सहित चित्र एवं महामृत्युंजय यंत्र स्थापित कर लेना चाहिए।
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* जिस स्थल पर मंत्रानुष्ठान करना हो, वहां का वातावरण पूर्णतः सात्विक होना चाहिए।
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* जप पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। साधना काल में शुद्ध घी का दीपक निरंतर प्रज्ज्वलित रहना चाहिए।
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* मंत्र का जप ऊन के आसन पर बैठकर चंदन या रुद्राक्ष की माला पर करना चाहिए।
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* साधना काल में ब्रह्मचर्य का पूर्णरूप से पालन करना चाहिए और मन की एकाग्रता बनाए रखनी चाहिए।
* साधना काल में यथासंभव एक समय ही भोजन करना चाहिए।
* संध्या के समय दाढ़ी या सिर के बाल नहीं काटने चाहिए।
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* अनुष्ठान आरंभ करने से पूर्व मंत्र को संस्कारित कर लेना चाहिए।
* जितने समय तक जितनी संख्या में जप करना हो, उसे विधिपूर्वक करना चाहिए।
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* मंत्र के समय में परिवर्तन नहीं होना चाहिए तथा संकल्प के समय निर्धारित संख्या से कम संख्या में जप नहीं करना चाहिए।
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* वस्त्र धुले हुए, स्वच्छ, पवित्र व बिना सिले धारण करने चाहिए।
* जब तक साधना चले, तब तक अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए।
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* सात्विक जीवन बिताना चाहिए।
* मंत्रों का उच्चारण शुद्ध व स्वर बहुत धीमा होना चाहिए।
* सबसे अच्छा है मानस जप करें।
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* अनुष्ठान से संबंधित सभी क्रियाएं श्रद्धा, विश्वासपूर्वक करनी चाहिए।
* साधना काल में नीच व्यक्तियों के साथ वार्तालाप और उनका स्पर्श नहीं करना चाहिए।
* असत्य नहीं बोलना चाहिए। क्रोध नहीं करना चाहिए।
* इस बात का ध्यान रहे कि साधना काल में कोई आपके समक्ष न हो।