भारतीय ज्ञान परंपरा का अर्थ है, भारत के ज्ञान, दर्शन, और संस्कृति का एक विस्तृत संग्रह, जो हजारों वर्षों से चला आ रहा है। इसमें वेदों, उपनिषदों, शास्त्रीय ग्रंथ, पांडुलिपियों, दर्शन, धर्म, कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, ज्योतिष, ध्यान और मौखिक संचार के रूप में जीवन के अन्य पहलुओं पर ज्ञान शामिल है।
यह परंपरा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थों को प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसके अंतर्गत जीवन निर्वाह करने हेतु व्यवहारिक ज्ञान जैसे शिकार या कृषि, पारंपरिक चिकित्सा, आकाशीय ज्ञान (खगोल विज्ञान), शिल्प, कौशल, जलवायु और क्षेत्र की पारंपरिक प्रौद्योगिकियां के बारे में प्राप्त किए जाने वाला ज्ञान शामिल है। इसमें ज्ञान और विज्ञान लौकिक और पारलौकिक कर्म और धर्म तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में अध्यात्म (Spirituality) एक अत्यंत गूढ़, व्यापक और बहुआयामी विषय है। यह न केवल आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझने का प्रयास करता है, बल्कि जीवन के परम लक्ष्य - मोक्ष (मुक्ति), आत्मज्ञान, और ब्रह्मज्ञान की ओर भी मार्गदर्शन करता है। हमारी परंपराएं हमें धैर्य, साहस एवं आत्मविश्वास प्रदान करती हैं, हम परंपराओं का महत्व अन्य प्रकार से प्रकट कर सकते हैं। परंपराएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित की जाती हैं। ये समूह की आदतें हैं, व्यक्ति विशेष की कोई परंपरा नहीं होती।
भारतीय ज्ञान परंपरा, अध्यात्म के संदर्भ में देखें तो यह जीवन जीने के तरीकों का एक विशाल और जटिल नेटवर्क है। यह परंपरा हमें आत्मा, ब्रह्मांड और जीवन के अर्थ को समझने में मदद करती है। 'अध्यात्म' शब्द दो भागों से बना है: 'अधि' (ऊपर या परे) और 'आत्मा' (स्वयं)। इसका अर्थ है आत्मा के परे या उसके सर्वोच्च स्वरूप की ओर जाने की प्रक्रिया। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा की खोज, आत्मनिरीक्षण, और ब्रह्म से एकत्व की अनुभूति का मार्ग है।
अध्यात्म के उद्देश्य आत्मा की पहचान: 'अहं ब्रह्मास्मि', 'तत्त्वमसि' जैसे महावाक्य: संसार से विरक्ति नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण जीवन एवं अंतर्मुखी होना, बाह्य से भीतरी यात्रा की ओर। समकालीन प्रासंगिकता की बात करें तो आज के युग में भारतीय अध्यात्म: मानसिक शांति, जीवन में संतुलन, उद्देश्य की अनुभूति एवं आध्यात्मिक विज्ञान (Spiritual Psychology) और माइंडफुलनेस में योगदान दे रहा है
भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रमुख विशेषताएं:
आध्यात्मिकता: भारतीय ज्ञान परंपरा का केंद्र बिंदु अध्यात्म है, जो आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मांड के बीच संबंध को समझने पर आधारित है।
दर्शन: इस परंपरा में कई दार्शनिक विचारधाराएं हैं, जैसे कि सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा। ये दर्शन हमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
विज्ञान और तकनीक: भारतीय ज्ञान परंपरा में विज्ञान और तकनीक का भी महत्वपूर्ण स्थान है। आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, खगोल विज्ञान और धातु विज्ञान जैसी कई वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों का उल्लेख है।
संस्कृति और कला: भारतीय ज्ञान परंपरा में संस्कृति और कला का भी गहरा संबंध है। संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला और साहित्य जैसी कलाओं का विकास हुआ है, जो हमारी संस्कृति और विचारों को व्यक्त करती हैं।
धर्म: भारतीय ज्ञान परंपरा में विभिन्न धर्मों का भी उल्लेख है, जैसे कि हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म। ये धर्म हमें जीवन जीने के नैतिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों को सिखाते हैं।
आत्मा: भारतीय ज्ञान परंपरा में आत्मा को महत्वपूर्ण माना गया है। यह माना जाता है कि आत्मा अमर है और वह पुनर्जन्म के चक्र से गुजरती है।
मोक्ष: भारतीय ज्ञान परंपरा में मोक्ष को जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है। मोक्ष का अर्थ है सांसारिक बंधन से मुक्ति और आत्मा का परमात्मा से मिलन।
भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्व: भारतीय ज्ञान परंपरा मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती है। यह हमें आत्म-साक्षात्कार, आत्म-नियंत्रण, और आत्म-सुधार करने में मदद करती है। यह हमें जीवन के उद्देश्य को समझने में भी मदद करती है और हमें एक बेहतर और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। भारतीय ज्ञान परंपरा एक व्यापक और विविध परंपरा है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में अध्यात्म सृष्टि की रचना और उस प्रयोजन, कर्मफल, जीवन की सार्थकता, पुनर्जन्म आदि को सूक्ष्मता से समझता है। मैंने अपने आनंद के स्रोत अध्यात्म के द्वारा जीवन के गहरे अर्थ को समझते हुए यह बताने का हमेशा प्रयास किया है कि, यह सिर्फ धार्मिक विश्वासों से नहीं, बल्कि अपने भीतर शांति, संतुलन, और समर्पण को खोजने से जुड़ा हुआ है। हमारी चेतनाएं, सृष्टि के धागे, इंद्रियों के कर्म, जुड़ी अपेक्षाएं, कर्म कठपुतली, वाणी-कथन, बहे काल-प्रवाह, अन्तर्द्वंद, अन्तर्मन, मध्य यक्ष-प्रश्न, शाश्वत-समाधि, सृष्टि-सृजनरत, जप व्रत साधना, ज़िंदगी मौत सी फिर शांति दिव्य-शांति।
चेतन बोध: चेतन बोध (consciousness awareness) अध्यात्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चेतन बोध और अध्यात्म का संबंध: अध्यात्म में चेतना को आत्मा, ब्रह्म या परम सत्ता से जोड़कर देखा जाता है। यह केवल मानसिक या बौद्धिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि अस्तित्व की गहराई में स्थित एक अनुभूति है।
माण्डूक्य उपनिषद के अनुसार, चेतना की चार अवस्थाएं होती हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। तुरीय अवस्था को सबसे शुद्ध और जागरूक अवस्था माना गया है, जहां व्यक्ति आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव करता है। चेतना का विकास तब होता है जब व्यक्ति अपनी सीमाओं को पार कर समग्र अस्तित्व के साथ एकता का अनुभव करता है। इस योग का मूल उद्देश्य भी है - 'मैं' और 'तुम' के भेद को मिटाकर समग्रता का अनुभव करना।
इस प्रकार, चेतन बोध न केवल अध्यात्म का हिस्सा है, बल्कि उसका मूल आधार भी है। अध्यात्मिक साधनाएं जैसे ध्यान, योग और आत्मचिंतन का उद्देश्य चेतना को जागृत करना और आत्मा के साथ एकत्व का अनुभव करना होता है। प्रकृति और प्रभु की कृपा सभी पर बराबर बरसती है, किन्तु सभी को इस कृपा का एहसास नहीं हो पाता। इसका एहसास होना ही चेतना बोध है। चेतना का ज्वार सुबह-शाम बदलता रहता है। यही हाल जीवन का है। सुख-संपत्ति-शांति तो अपने शुभाशुभ किए कर्मानुसार ही मिलती है।
भौतिक साधनों की प्राप्ति के अनेक कारण हो सकते हैं। कर्म से पूर्व ज्ञान होना आवश्यक है, तो ही उसका परिणाम अच्छा होता है। देश-काल-परिस्थितियां अनुकूल हों तो जैसा कर्म किया है वैसा ही फल मिलता है। पूर्व-जन्मांतरों के संचित कर्मों के फलस्वरूप जो प्रारब्ध होते है उनसे भी अपने संचित खाते के अनुसार फल प्राप्ति होती है। धर्मानुसार ही कमाया हुआ धन ही भौतिक साधनों से सुख-शांति प्रदान करता है जो जीवात्मा के नैमित्तिक गुण है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में प्राण की दो धाराएं है: एक जीवोन्मुखी दूसरी मृत्योन्मुखी। मानव चेतना, चेतन आत्मा, चैतन्य, चेतना का वास, मौन से मौन तक की यात्रा एवं अस्तित्व को स्वयं की तथ्यपरक अनुभूतियों से उजागर करने का प्रयास है। अपने प्रयासों से, निरीक्षण से, आत्मावलोकन से, विचार-भाव के सहारे, हम प्राण और उस शक्ति का पूर्ण भास्कर रूप प्राप्त कर सकते हैं, मानव चेतना के धवल शिखर को छू सकते हैं अपने अंतरमन के सच्चे स्वरूप को निखार सकते हैं।
अपने होने के आनंद को प्राप्त कर सकते हैं। अपने होने के आनंद को पाना एक गहरी और व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जो भीतर से जुड़ी होती है। यह आपके दृष्टिकोण को सकारात्मक और संतुष्ट बनाने में मदद करती है। ध्यान के माध्यम से भी व्यक्ति अपने बाहरी संसार से अलग हो जाता है और भीतर की शांति और सच्चाई की ओर अग्रसर होता है।
यह प्रक्रिया आत्म-ज्ञान और परमात्मा के साथ एकता का अनुभव करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होती है। हमें भीतर छिपी हुई दिव्य चेतना का अनुभव होता है। यदि ध्यान के द्वारा उच्च जीवन के शिखर पर पहुंचना हो तो सावधानी के साथ सीढ़ियों से चढ़ना आरंभ कर दीजिए। चढ़ने में भी श्रम कष्ट न होकर आराम सुख मिलेगा और शिखर पर पहुँच जाने पर तो परमानन्द स्वरूप की प्राप्ति हो ही जाएगी।ALSO READ: भारतीय ज्ञान परंपरा में ध्यान के विभिन्न स्वरूप जानें