शत्रु को मित्र बनाते हैं श्री हरिद्रा गणेश

श्री गणेश के अनेक प्रचलित रूपों में हरिद्रा गणेश का अपना अलग विशेष महत्व है। दशों महाविद्याओं के अलग-अलग भैरव तथा गणेश हैं। श्री बगलामुखी के गणेश हरिद्रा गणेश हैं।

FILE


पीला रंग स्तम्भन का माना जाता है तथा यह रंग सौंदर्यवर्धक तथा विघ्नविनाशक भी माना जाता है। त्रिपुर सुन्दरी श्रीदेवी के आवाहन करने पर हरिद्रा गणपति ने दैत्य के अभिचार को नष्ट किया था।

हरिद्रा गणेश के प्रयोग से शत्रु का हृदय द्रवित होकर वशीभूत हो जाता है तथा श्री बगलामुखी साधना में बल प्रदान करता है।


-ध्यान-

स्वर्ण के आसन पर स्थित, पीताम्बर धारण किए हुए, पाश, अंकुश, मोदक तथा हस्तिदंत धारण किए हुए, ‍त्रिनेत्र हल्दी के समान वर्ण वाले भगवान हरिद्रा गणेश को मैं भजता हूं।

FILE


-मंत्र-

'ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपतये वर वरद सर्व जन हृदयं स्तम्भय-स्तम्भय स्वाहा।'

हाथ में जल लेकर विनियोग करें।

विनियोग :

ॐ अस्य श्री हरिद्रा गणेश मंत्रस्य मदन ‍ऋषि:, अनुष्टुप छन्द:, श्री हरिद्रा गणेश देवता, ममाभीष्ट (कामना बोलें)। सिद्धयर्थे जपे विनियोग:। (जल छोड़ें।)

ऋषियादिन्यास :

ॐ मदन ऋषये नम: शिरसि,
अनुष्टुप छन्दसे नम: मुखे,
हरिद्रा गणेश देवतायै नम: ह्रीद,
विनियोगाय नम: सर्वांगे।

करन्यास__________________अंगन्यास

ॐ हुं गं ग्लौं__________________अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:
हरिद्रा गणपतये__________________ तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा
वर वरद__________________मध्यमाभ्यां नम:शिखायै वषट्
सर्वजन हृदयम्__________________अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुम्
स्तम्भय-स्तम्भय_________________कनिष्ठिकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वौषट्
स्वाहा__________________करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय फट्


इसमें गुड़ तथा पिसी हल्दी से गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करें। चार लाख जप करें तथा घृत-हल्दी मिश्रित तंदुल से दशांस होम कर कन्या द्वारा पिसी हल्दी का स्वयं के शरीर पर लेपन कर तीर्थ जल से स्नान कर शुक्ल चतुर्थी से पूजन जप-प्रारंभ करें।

FILE


चार सौ चवालीस तर्पण कर एक हजार आठ जप करें। घृत मिश्रित अपूप से आहुति देकर बटुकों, कन्याओं को भोजन कराएं। लाजा होम से कन्या को वर प्राप्ति तथा संतानहीन स्त्री गोमूत्र तथा दुग्ध में धोकर 'बंच' और 'हल्दी' पीसकर मंत्र से 108 बार अभिमंत्रित कर औषध पान करें तो उसे पुत्र लाभ होगा।

शत्रु वशीकरण हेतु घृत-हल्दी-चावल मिलाकर होम करें, पश्चात् कन्याओं तथा बटुकों को भोजन कराएं। अपने गुरु का पूजन कर वस्त्र, दक्षिणादि देकर संतुष्ट करें,‍ निश्चय ही सिद्धि होगी

वेबदुनिया पर पढ़ें