आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक नवरात्रि व्रत में मां दुर्गा की विशेष उपासना की जाती है। नवरात्रि मुख्य रूप से वासंतिक और शारदीय दो हैं। शारदीय नवरात्रि में शक्ति की उपासना विशेष महत्व रखती है।
प्राचीन काल में युद्ध नीति के अनुसार शरद ऋतु में ही शत्रुओं पर आक्रमण किया जाता था इसीलिए शारदीय नवरात्रि उपासना विशेष महत्व रखती है।
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इस उपासना में वर्ण, जाति एवं समुदाय का भेदभाव नहीं होता। अतः सभी वर्ग एवं जाति के लोग भगवती भवानी की आराधना एवं उपासना करते हैं।
नवदुर्गा की उपासना करने वाले साधक प्रतिपदा से नवमी तक अपने संकल्पों के अनुसार व्रत रखते हैं। कुछ लोग निराहार व्रत करते हैं तो कुछ लोग एक भुक्त अर्थात् शाम को व्रत खोलने के बाद भोजन करते हैं। कुछ लोग फलाहार अथवा दूध पीकर भी उपासना करते हैं।
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दुर्गा उपासना में भक्ति और अनुष्ठान दोनों विधियां हैं। जहां तपस्वी ब्राह्मणों द्वारा यजमान, समाज अथवा राष्ट्र के लिए संकल्प के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। वहीं आत्म कल्याण के लिए निष्काम भाव से भी कुछ साधक मां की आराधना करते हैं। अनुष्ठान करने वालों के लिए विशेष सावधानियां होती हैं।
उन्हें यम-नियम का पालन करते हुए भगवती दुर्गा की आराधना पूर्वक अनुष्ठान एवं पाठ करना चाहिए। अनुष्ठान कर्ता जितने संयमित-नियमित एवं शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध रहेंगे उन्हें उतनी ही अधिक सफलता एवं मां की कृपा प्राप्त होगी।