बच्चों, हम जब छोटे थे तो हमारे पूज्य पिताजी रोज चार आने पॉकेट खर्च के नाम से देते थे। हम बहुत खुश थे क्योंकि दो आने का एक गिलास गरमा-गरम दूध और दो आने की एक पाव गरम जलेबी मिल जाती थी। समय बदला दुनिया बदली और फिजा बदल गई किंतु पुराने जमाने के पापा नहीं बदले इतनी मंहगाई में भी पॉकेट खर्च केवल एक रुपए। भला बताओ क्या होगा एक रुपए में। एक नन्हीं अपनी मां से शिकायत कर रही है और मांग कर रही है पॉकेट खर्च बढ़ाने की। तुम्हारे मम्मी-पापा भला कितना देते हैं हमें बताना। हम तुम्हारा पॉकेट खर्च बढ़ाने की जरूर सिफारिश करेंगे।
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पॉकेट खर्च बढ़ा दो मम्मी पॉकेट खर्च बढ़ा दो पापा
एक रुपए में तो पापाजी अब बाजार में कुछ न आता।
एक रुपए में तो मम्मीजी चॉकलेट तक न मिल पाती इतने से थोड़े पैसे में भूने चने मैं कैसे लाती।
ब्रेड मिल रही है पंद्रह में और कुरकुरे दस में आते एक रुपए की क्या कीमत है पापाजी क्यों समझ न पाते।
पिज्जा है इतना महंगा है कि तीस रुपए में आ पाता है एक रुपया रखकर पॉकेट में मेरा तन-मन शर्माता है।
आलू चिप्स पांच में आते और बिस्कुट पॅकैट दस में अब तो ज्यादा चुप रह जाना रहा नहीं मेरे बस में।
न अमरूद मिले इतने में न ही जामुन मिल पाए एक रुपए में प्रिय मम्मीजी आप बता दो क्या लाएं।
मुझको खाना आज जलेबी मुझको खाना रसगुल्ला इतने से पैसों में बोलो क्या मिल पाए आज भला।
तुम्हीं बता दो अब मम्मीजी कैसे पॉकेट खर्च चले समझा दो थोड़ा पापा को उधर न मेरी दाल गले
कम से कम दस करवा दें इतने से काम चला लेंगे एक साल तक प्रिय मम्मीजी कष्ट आपको न देंगे।