एक समय की बात है। मालवा में अकाल पड़ गया। वहां के राजा सोचने लगे, क्या किया जाए? नदियां सूख रही हैं। कहीं भी पानी नहीं।
क्यों न कुएं खुदवाए जाएं, तभी प्रजा का पालन हो सकेगा। कुएं खोदते-खोदते महीनों बीत गए। पानी नहीं निकलना था, सो नहीं निकला। राज्य के पंडितों-जानकारों को बुलाया गया। कोई हल नहीं निकला। एक चालाक पंडित ने कुछ सोचकर कहा-
'ये सब जलदेवी का प्रकोप है। वे तभी मानेंगी जब किसी की बलि दी जाए। जमीन में जैसे ही किसी के खून की बूंद गिरेगी वो पानी से भर जाएगा। शर्त यह है कि वह 11 वर्ष का हो, उसके घुंघराले बाल हों और जिसके एक हाथ में छ: अंगुलियां हों।' इतना कहकर एक शैतानी मुस्कान से उसका चेहरा खिल उठा।
वास्तव में गांव में ऐसा एक ही लड़का था- सुमेर। सुमेर की मां सौतेली थी। पिता भी गुजर गए थे। पंडित के दिमाग में सुमेर को ठिकाने लगाने की योजना चल रही थी, क्योंकि पंडित सुमेर की सौतेली मां को पसंद करता था। वह स्त्री भी पैसे की लालची थी। पंडित और पैसे के चक्कर में वह स्त्री अपनी ममता भुला बैठी।
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उसने दो हजार मोहरें लेकर सुमेर को बलि के लिए दे दिया। सुमेर ठहरा मातृभक्त, पर मन ही मन उसे बड़ा दुख हुआ।
बलि का दिन तय हुआ। राजा ने सुमेर से पूछा- 'तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?'
सुमेर बोला- 'मैं तो मोक्ष के लिए जा रहा हूं। मेरी बलि से अगर कुएं में पानी आता है तो यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी, किंतु बलि से पहले मुझे तीन दिन तक गांव में भीख मांगने की अनुमति चाहिए।'
राजा तैयार हो गया। दूसरे दिन सुमेर घर पहुंचा। दरवाजे पर उसे देख उसकी मां ने मुंह फेर लिया। तीन दिन तक सुमेर इस आशा में घर भीख मांगने गया कि शायद मां की ममता जाग जाए। पर पैसे का लोभ बड़ा बुरा होता है। उसने तीनों दिन सुमेर से मुंह फेर लिया। तीन दिन पूरे हुए। फिर बलि का दिन तय हुआ। हजारों नर-नारी बलि देखने आए।
राजा ने पूछा- 'मन में कोई बात हो तो कहो।'
सुमेर बोला-
'हे परमात्मा मां मेरी माया की लोभी पंडित है मेरी मां का लोभी दुनिया है तमाशे की लोभी राजा है पानी का लोभी परमेश्वर, तू किसका लोभी?'
ऊपर राजा इन्द्र ने सुना तो उन्होंने जलदेवी से पूछा। जलदेवी ने कहा- 'भगवान, मैं किसी बलि की अभिलाषी नहीं हूं। यह तो पंडित की चाल है।'
राजा इन्द्र और जलपरी ने मालवावासियों की आंखें खोलने की सोची।
जैसे ही बलि होने वाली थी राजा इन्द्र की आकाशवाणी हुई- 'एक बलि से कुछ नहीं होगा। हजारों-हजार बलि होगी, तब कहीं जलदेवी खुश होंगी।'
जलदेवी ने चारों ओर से ऐसे फव्वारे छोड़े कि जनता डूबने लगी। सभी घबराकर प्रार्थना करने लगे।
जलदेवी सुमेर का हाथ पकड़कर प्रकट हुईं।
कहा- 'कोई देवी-देवता मनुष्य की जान का लोभी नहीं है। बलि देना किसी पुण्य का काम नहीं है। देवी-देवता उससे खुश नहीं होते। जल अमृत के समान होता है। धरती पर अगर इसकी मात्रा कम होगी तो हजारों-हजार बलि मुझे अपने आप मिल जाएंगी। जल की मात्रा कम होने का यूं तो कारण आप ही हैं, पर जल की बर्बादी रोकने के लिए मैंने पानी का अभाव पैदा किया। बलि की गलत धारणा खत्म करने के लिए बाढ़ का प्रकोप किया।'
राजा और प्रजा ने सिर झुकाकर जलदेवी का नमन किया और मन ही मन संकल्प लिया- 'अब कभी कोई बलि नहीं होगी, ना ही जल को बर्बाद होने देंगे।'
पंडित वहां से तुरंत चंपत हो गया।
राजा बालक सुमेर से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया। मालवा में फिर अमन-चैन आ गया।