पोप की 'होप', फ्रांसिस की उत्कट इच्छा, जो अब तक अपूर्ण ही रही

राम यादव

गुरुवार, 23 जनवरी 2025 (19:07 IST)
Pope Francis Autobiography: कैथलिक ईसाई चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने अपनी आत्मकथा प्रकाशित की है। यह पहली बार है कि कैथलिक ईसाइयों के किसी सर्वोच्च धर्माधिकारी ने अपने जीवनकाल में ही अपनी आपबीती और अपने कार्यों को सार्वजनिक करना उचित समझा है। पुस्तक के प्रकाशक के अनुसार, लगभग 300 पृष्ठों वाली इस पुस्तक का दर्जनों भाषाओं में अनुवाद किया गया है। वह दुनिया भर के लगभग 100 देशों में बिकेगी। 14 जनवरी से 80 देशों में उसकी बिक्री आरंभ भी हो चुकी है। शीर्षक है 'होप' यानी आशा।
 
एक पत्रकार के सहोग से लिखा है : यह पुस्तक पोप ने पूर्णतः स्वयं नहीं लिखी है, बल्कि वह उनके एक विश्वस्त इतालवी पत्रकार कार्लो मुसो को उनके द्वारा पिछले 6 वर्षों में दिए गए साक्षात्कारों पर आधारित है। पुस्तक में पोप ने अपने बचपन से लेकर विश्व भर के 1 अरब 37 करोड़ 60 लाख कैथलिकों का सर्वोच्च धर्माधिकारी बनने तक की विभिन्न बातों का वर्णन तो किया ही है, आज की दीन-दुनिया के बारे में भी अपने मन की बातें कई बार खुलकर कही हैं। उनके द्वारा उपलब्ध कराई गई कई निजी तस्वीरें और अप्रकाशित निजी सामग्रियां पुस्तक को और अधिक विशिष्ट बना देती हैं।
 
पोप के सह-लेखक कार्लो मुसो का कहना है कि मूल योजना वास्तव में पोप की मृत्यु के बाद उनके संस्मरणों को प्रकाशित करने की थी। लेकिन, वर्ष 2025 क्योंकि 'कैथोलिक चर्च का जयंती वर्ष' है, इसलिए पोप फ्रांसिस ने अपनी आत्मकथा को इस जयंती वर्ष के साथ जोड़ने के लिए, जो क्रिसमस की पूर्व संध्या पर शुरू हुआ था, पुस्तक को 'अभी ही' प्रकाशित कर देने का फैसला किया। ALSO READ: लाओस, जहां सनातन हिन्दू धर्म मुख्‍य धर्म था, आज भी होती है शिवभक्ति
 
सबसे दीर्घायु पोप : कई प्रेक्षक इस 'अभी ही' के पीछे एक दूसरा कारण भी देखते हैं। उनका मानना है कि 88 वर्ष के हो चुके पोप फ्रांसिस, एक सदी से भी अधिक समय से सबसे दीर्घायु पोप हैं। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा है। 2023 में एक बड़ा ऑपरेशन हुआ था। घुटनों में दर्द के कारण वे चल-फिर भी नहीं पाते, पहियाकुर्सी (व्हीलचेयर) का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए भी उन्होंने कहा होगा कि उनकी आत्मकथा प्रकाशित करने का यही सबसे सम्यक समय है। 
 
छह वर्षों में लिखी गई यह पूरी आत्मकथा, अक्टूबर 1927 वाले दशक के आरंभ में पोप फ्रांसिस की इतालवी जड़ों के उल्लेख और उनके पूर्वजों के इटली छोड़कर लैटिन अमेरिका जाने के साहसी प्रवास के साथ शुरू होती है। उस समय, इटली के गेनुआ शहर से पानी के जिस जहाज द्वारा उनके दादा-दादी व पिता मारियो ने दक्षिणी अमेरिका में अर्जेन्टीना जाने के लिए टिकट बुक किए थे, 'मफ़ाल्दा' नाम के उस जहाज़ के चलने के दिन तक 'सौभाग्य' से वे अपना घर-बार बेच नहीं पाए थे, वर्ना अनिष्ट हो जाता। वह जहाज 25 अक्टूबर, 1927 को ब्राज़ील के तट के पास समुद्र में डूब गया। जहाज़ में सवार 1252 यात्रियों और कर्मीदल के सभी सदस्यों में से 314 को बचाया नहीं जा सका। ALSO READ: क्या मृत्यु जीवन की अंतिम अवस्था है? एक और अवस्था के बारे में पढ़कर चौंक जाएंगे
 
ईश्वरीय विधान को धन्यवाद : पोप फ्रांसिस ने लिखा है, 'यही कारण है कि मैं अब यहां हूं।... आप कल्पना नहीं कर सकते कि मैंने कितनी बार अपने आप को ईश्वरीय विधान को धन्यवाद देते हुए पाया है।' उनका कहना है कि वे तो पैदा ही नहीं हुए होते, यदि उनके दादा-दादी और पिता उसी जहाज़ में रहे होते, जिसके टिकट उन्होंने पहले ही बुक किए थे। अपने परिवार के इतिहास के माध्यम से उन्होंने उन संघर्षों और त्रासदियों को पहचाना, जिनका किसी देश में बाहर से आए आप्रवासियों को सामना करना पड़ता है।
 
पोप फ्रांसिस का जन्म 17 दिसंबर, 1936 को अर्जेन्टीना की राजधानी बुएनोस आइरेस में हुआ था। 13 मार्च, 2013 के दिन वैटिकन में दुनिया भर के कैथलिक चर्चों के कार्डिनलों की सभा द्वारा पोप चुने जाने से पहले उनका मूल नाम था– ख़ोर्खे मारियो बेर्गोलियो (Jorge Mario Bergoglio)। अपने नए नाम फ्रांसिस, लैटिन अमेरिकी उद्गम और15वीं शताब्दी के बाद से किसी पोप द्वारा अपने निजी संस्मरण प्रकाशित करने वाले वे पहले पोप हैं। ALSO READ: हीरों की 18 किलोमीटर मोटी परत, बुध ग्रह पर हीरे ही हीरे
 
एक बड़े परिवार में पले-बढ़े : अर्जेंटीना में बस गए इतालवी प्रवासियों के पोते के रूप में, वे एक बड़े परिवार में पले-बढ़े। फुटबॉल और टांगो डांस से बहुत प्यार था। अपनी दादी रोज़ा से बहुत लगाव था और अपनी युवावस्था में एक लड़की से प्यार भी हो गया था। उन्होंने रसायन शास्त्र की पढ़ाई की थी और एक प्रयोगशाला में कुछ समय तक काम भी किया था। उनके पिता की एक फुटबॉल मैच के दौरान दिल का दौरा पड़ने से 1961 में मृत्यु हो गई। पिता तब केवल 53 वर्ष के थे। अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ा होने के कारण, भावी पोप को जल्दी ही बड़ा और सयाना हो कर अपने भाई-बहनों की देखभाल करनी पड़ी।
 
लेकिन, समय के साथ भाग्य का रुख भी बदलने लगा। 1969 में वे कैथलिक पादरी, 1998 में बुएनोस आइरेस के आर्कबिशप और 2001 में उस समय के पोप जॉन पॉल द्वारा कार्डिनल घोषित ‍किए गए। फ़रवरी 2013 में तत्कालीन जर्मन पोप, बेनेडिक्ट 16वें द्वारा अपना पद त्याग देने और सन्यास ले लेने के बाद, उसी वर्ष 13 मार्च को, ख़ोर्खे मारियो बेर्गोलियो को रोम में स्थित वैटिकन में कैथलिक ईसाइयों का नया पोप चुना गया। उन्हें एक ऐसा नया नाम दिया गया, जो उनसे पहले किसी पोप को नहीं मिला था– फ्रांसिस।
 
आशा से अधिक निराशा : अपनी पुस्तक 'होप' में पोप फ्रांसिस अपने कार्यकाल के कई ऐसे विषयों का उल्लेख करते हैं, जो उनके लिए भी आशा से अधिक निराशा के उदाहरण हैं: युद्ध और अनियंत्रित पूंजीवाद; पर्यावरण के प्रति चिंता; कैथलिक चर्च में रूढ़िवादिता की जगह उदारता होने और चर्च को किसी किले के रूप में नहीं, एक अस्पताल के रूप में देखे जाने की उनकी उत्कट इच्छा, जो अब तक अपूर्ण ही रही। वे यूक्रेन में रूसी आक्रामकता, हमास के आतंकवाद (बर्बरता, कत्लेआम) और गाज़ा में युद्ध की निंदा करते रहे। इसराइल की कुछ सैन्य कार्रवाइयों को 'आतंकवाद' बताते रहे।
 
पोप फ्रांसिस के व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो बहुत बिरली हैं। उन्होंने टेलीविज़न न देखने की प्रतिज्ञा कर रखी है और प्रतिज्ञा पर अटल बने रहे हैं। वैटिकन को कवर करने वाले पत्रकार वर्षों से सुनते रहे हैं कि पोप फ्रांसिस टीवी नहीं देखते। लेकिन, उनकी इस आदत के पीछे का कारण रहस्य बना हुआ था। 'होप' में, पोप फ्रांसिस ने इस रहस्य का कारण 15 जुलाई, 1990 को 'वर्जिन मैरी' को दिया एक वचन बताया है।
 
प्रतिज्ञा-भंग का एकमात्र अपवाद : पोप लिखते हैं कि 15 जुलाई, 1990 वाली शाम को वे बुएनोस आइरेस में अपने जेसुइट समुदाय के साथ टीवी देख रहे थे। तभी स्क्रीन पर एक घिनौना दृश्य दिखाई दिया, जिससे मुझे बहुत ठेस पहुंची।... यह ऐसा था, मानो भगवान ने मुझसे कहा हो कि टेलीविज़न मेरे लिए नहीं है, इससे मेरा कोई भला नहीं होगा! 
 
पोप ने केवल 11 सितंबर, 2001 के दिन को अपनी प्रतिज्ञा-भंग का एकमात्र ऐसा दुर्लभ अपवाद बताया है जब उन्होंने टीवी देखा, अन्यथा वे अपनी प्रतिज्ञा पर सदा अटल रहे। स्मरणीय है कि उस दिन ओसामा बिन लादन वाले 'अल क़ायदा' के इस्लामी आतंकवादियों ने अमेरिका के जिन यात्री विमानों का अपहरण किया था, उनमें से दो ने न्यूयॉर्क के 'वर्ल्ड ट्रेड सेंटर' से टकरा कर उसे ध्वस्त कर दिया था। इस घटना के साथ ही दुनिया में इस्लामी आतंकवाद का एक अपूर्व नया दौर शुरू हुआ था।
 
दुस्साहसिक इराक़ यात्रा : फ्रांसिस से पहले कोई दूसरा पोप कभी इराक़ नहीं गया था। वे मार्च 2021 में चार दिनों के लिए इराक़ गए। उनके सभी सलाहकारों ने उनसे कहा था कि इराक़ जाना बहुत खतरनाक़ सिद्ध हो सकता है। वे नहीं माने, वहां गए और बल-बाल बचे। ब्रिटिश गुप्तचर सेवाओं ने वैटिकन के सुरक्षा विभाग को सूचित किया कि एक महिला उन पर 'आत्मघाती हमला करने के इरादे से विस्फोटक पदार्थ लेकर मोसुल जा रही है।' इसी इरादे से एक तेज़ गति ट्रक का भी इस्तेमाल हो सकता है। पोप ने वैटिकन के अपने सुरक्षा विभाग से पूछा कि भावी हत्यारों का क्या हुआ? सुरक्षा गार्ड के कमांडर ने संक्षिप्त उत्तर दिया: 'वे अब वहां नहीं हैं।' पोप लिखते हैं, इराक़ी पुलिस ने 'उन्हें रोका और विस्फोट कर उड़ा दिया... इससे मुझे गहरा सदमा लगा।' 
 
दूसरी ओर, उनकी अत्मकथा के कुछेक समीक्षकों का कहना है कि पोप फ्रांसिस द्वारा सत्ता संभालने के बाद से कैथलिक चर्च के विभिन्न शर्मनाक कांडों में कमी नहीं आई है। 2018 के एक बहुचर्चित विवाद की याद दिलाते हुए समीक्षकों ने लिखा है कि यौन शोषण करने वाले को छिपाने के आरोपी एक बिशप को, उन्होंने चिली में अपने साथ 'मास' कहलाने वाला अनुष्ठान मनाने की अनुमति दी थी (संबंधित बिशप ने यौन दुराचार के बारे में जानकारी होने से इनकार किया है)। इसी प्रकार न ही उन्होंने कभी यह बताया कि 2018 तक अमेरिकी कार्डिनल टॉमस मैक्कारिक के खिलाफ यौन दुराचार के आरोप वैटिकन को रिपोर्ट किये जाने के बावजूद उन्हें कैसे इस दुराचार का पता नहीं था।
 
अर्जेन्टीना का काला सैन्य तानाशाही काल : इसी प्रकार, न ही इस बात का कोई सही उत्तर है कि अर्जेन्टीना में 1974 से 1983 तक चले गृह युद्ध और सैन्य तानाशाही के समय सेना द्वारा प्रताड़ित दो साथी जेसुइटों का क्या हुआ, जब कि उस समय फ्रांसिस ही अर्जेंटीना में सर्वोच्च कैथलिक धर्माधिकारी थे? उन दिनों आज के पोप पर इन जेसुइटों की मदद करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था, हालांकि अपने बचाव में उनका कहना है कि 'मैंने सब कुछ करने की कोशिश की। वे भयानक वर्ष थे...हजारों हत्याएं, यातनाएं, गायबियां हुई थीं।' कई पादरी ही नहीं, यहां तक कि बिशप भी मारे गए।
 
समीक्षक ही नहीं, कुछ पाठक भी पूछ रहे हैं कि ऐसा क्यों है कि यह पोप – जिसने तलाकशुदा लोगों के साथ करुणा का परिचय देने की बात कही है, समलैंगिक लोगों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है और आम लोगों से चर्च में कहीं अधिक बड़ी भूमिका निभाने का आग्रह किया है – महिलाओं के पुजारी बनने का समर्थन नहीं करना चाहता? चर्च के प्रबंधन में महिलाओं को अधिक मात्रा में शामिल करने के बारे में तो कहा जाता है कि 'हां, हमें आगे बढ़ना चाहिए,' किंतु उन्हें पुरोहिती देने के प्रश्न पर कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं मिलता। 
 
अंतिम संस्कार की योजना बना ली है : पोप फ्रांसिस अपनी बढ़ती हुई आयु और घटते हुए स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह सजग हैं। उन्होंने सावधानीपूर्वक अपने अंतिम संस्कार की योजना बना ली है। 2023 में उन्होंने खुलासा किया कि वे सेंट पीटर्स बसिलिका में दफ़नाया जाना नहीं चाहते, जो पहले से ही कई पिछले पोपों का अंतिम विश्राम स्थल है। इसके बदले, उन्होंने रोम में अपने प्रिय चर्च, सांता मारिया मैगीगोर को अपने अंतिम विश्राम के लिए चुना है, जहां वे अक्सर प्रार्थना करने जाते रहे हैं। फ्रांसिस लिखते हैं, 'वैटिकन मेरी अंतिम सेवा का घर है, मेरा शाश्वत घर नहीं।'
 
पोप कोई भव्य अंतिम संस्कार नहीं चाहते। वास्तव में, उन्होंने वैटिकन के समारोही अनुष्ठानों के निदेशक से अपने अंतिम संस्कार के लिए पारंपरिक पूजा-पद्धति को मौलिक रूप से सरल बनाने के लिए कहा है। अंतिम संस्कार के लिए फ्रांसिस लिखते हैं, 'सम्मान के साथ, लेकिन किसी भी ईसाई की तरह, क्योंकि रोम का बिशप मात्र एक पादरी और शिष्य है, वह इस दुनिया का कोई शक्तिशाली व्यक्ति नहीं है।'
 

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