रॉबर्ट ब्राउनिंग का पत्र

...कर सकता, यदि मैं, कोई भी एक भावना, जिसकी जड़े तुम्‍हारे अंदर जन्‍म लेती- कितना अच्‍छा होता और कुछ क्षण के लिए ही सही मगर ऐसा होता। मुझे महसूस होता है कि यदि मैं खुद को दुबारा गढ़ पाता, तो सोने में बदल जाता, इतना ही नहीं मेरी इच्‍छा है कि मैं हीरा बन जाऊँ, जिसे तुम हमेशा पहनो।

जो इज्‍जत तुमने मुझे इस पत्र में दी है, उसे मैं हृदय से लगाता हूँ, जिसने मेरा सिर ऊपर उठा दिया है, क्‍या मैं ऐसी इज्‍जत पाने योग्‍य हूँ, यह मेरे लिए अत्‍यधिक कठिन होगा, मैं अपनी सारी कृतज्ञता उड़ेल दूँ।

- रॉबर्ट ब्राउनिंग
(1812-1889)

वेबदुनिया पर पढ़ें