शिवराज ने भी छेड़ा मोदी राग...

आजकल रेडियो पर आपको मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के स्वर में भाजपा को जिताकर नरेंद्र मोदी की सरकार बनाने का संदेश सुनाई दे रहा होगा। ऐसा लगता है कि शिवराज के दिल में अब जाकर मोदी प्रेम ने अंगड़ाई ली है। अन्यथा तो यह माना जा रहा था कि शिवराज स्वयं मोदी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहे हैं। इस संभावना को सर्वाधिक हवा लालकृष्ण आडवाणी के बयानों से मिलती रही।

ऐसा लग रहा था कि आडवाणी ‍को शिवराज ने स्वयं अपना कंधा उपलब्ध करा दिया है, क्योंकि आडवाणी अपने मध्यप्रदेश दौरों के दौरान ही शिवराज की तारीफों के पुल बांध रहे थे। यह सब नरेंद्र मोदी के भाजपा चुनाव समिति का अध्यक्ष घोषित किए जाने के परिणाम माना जा रहा था।
आडवाणी पिछले आम चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा के झंडाबरदार बनने को लालायित थे और स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानकर चल रहे थे। लेकिन पार्टी ने पहले तो चुनाव समिति की कमान मोदी के हाथों में दे दी और फिर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी उन्हें घोषित कर दिया। जले भुने आडवाणी को शिवराज के रूप मोदी से मुका‍बिल होने लायक एक अस्त्र नजर आया और वे शिवराज को भी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त बताने लगे।

बड़े पद की लालसा किस नेता में नहीं होती। शिवराज ने भी गुजरात में नरेंद्र मोदी के कारनामे की तरह मध्यप्रदेश में भाजपा को लगातार तीसरी बार जिताकर सत्ता दिलाने का श्रेय हासिल किया है। स्वाभाविक है वे अपने आपको मोदी के मुकाबिल समझें। इसका असर मध्यप्रदेश में झंडे बैनर से मोदी की तस्वीरें गायब होने के रूप में दिखाई भी दिया।

लेकिन, अब जबकि लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का आधा सफर तय हो चुका है। इस सफर के दौरान भी मोदी के समर्थन में शिवराज के बयान या पोस्टर आदि नजर नहीं आए। तो अब ऐसा क्या हो गया कि शिवराज भी 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा देने लगे हैं। एक ही कारण समझ में आता है कि अब आडवाणी के साथ शिवराज ने भी मान लिया है कि देश में मोदी लहर है। आडवाणी ने तो गांधीनगर सीट से टिकट मिलने के बाद ही मोदी राग अपना लिया था। शिवराज तक उसकी तरंगें अब पहुंची हैं। उन्होंने भी इसी के तार पर अपनी तरंगें छेड़ दी हैं।

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