राजनाथ को सता रहा भीतरघात का खतरा

लखनऊ में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह के चुनाव की तैयारियां धीरे-धीरे जोर पकड़ रही हैं। साथ ही बढ़ रही है भीतरघात की चर्चा और पार्टी के अंदर की जातिगत राजनीति। राजनाथ खुद पार्टी के स्टार प्रचारक और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन ऐसी क्या वजह आ गई है की राजनाथ को लखनऊ में प्रचार के लिए स्टार प्रचारक और अपने परिवार वालों का सहारा लेना पड़ रहा है।
WD

गाजियाबाद छोड़ लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक विरासत की ज़िम्मेदारी राजनाथसिंह ने अपने ऊपर लेने की ठानी और अपने को अटलजी का उत्तराधिकारी मानने वाले लालजी टंडन के पर कतर दिए गए। राजनाथ से बात के बाद उनकी नाराज़गी दूर तो हुई लेकिन उस दिन से यह चर्चा आम है कि कहीं न कहीं आहत टंडन अपने पार्टी अध्यक्ष को चोट ना पहुंचा दें। ऐसे में राजनाथ के लिए जितना ख़तरा अंदर से है उतना कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी और सपा के अभिषेक मिश्रा से भी नहीं है। इसलिए मौके की नज़ाकत को देखते हुए राजनाथसिंह ने तुरंत चुनाव प्रचार के लिए स्टार प्रचारक और अपने परिवार वालों का सहारा ले लिया।

राजनाथ खुद पार्टी के स्टार प्रचारक और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ऐसे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्टार प्रचारक नवजोतसिंह सिद्धू, स्मृति ईरानी का उनके इलाके में रोड शो करने की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई? हालांकि भाजपा इस मुद्दे पर अलग-अलग राग आलाप रही है।

वैसे तो राजनाथ ने लखनऊ में अपनी प्रेस वार्ता में यह कहा था कि वे टंडन के आग्रह पर ही लखनऊ से चुनाव लड़ रहे हैं और टंडन भी चुनाव की तैयारियों में गंभीरता से लगे हैं। दूसरी ओर टंडन और उनके सहयोगी बातचीत में भी यह जाहिर नहीं होने देते हैं कि उनमें आपसी मनमुटाव है, लेकिन बीते कुछ वर्षों की और हाल ही की घटनाओं से नहीं लगता कि दोनों पक्ष एक दूसरे पर पूरा भरोसा रख कर काम कर रहे हैं।

इस कड़ी की पहली घटना साल 2009 की है, जब विधानसभा उपचुनाव के लिए लखनऊ पश्चिम से अमित पुरी ने भाजपा की ओर से अपना नामांकन दाख़िल किया था। पुरी चुनाव हार गए और उन्होंने टंडन को दोषी ठहराया। इसके दो कारण थे। पहला यह कि लखनऊ पश्चिम टंडन का गढ़ है और दूसरा यह कि टंडन अपने बेटे गोपाल को टिकट दिलाना चाहते थे। साथ ही यह भी कहा जाता है कि पुरी को टिकट दिलाने में राजनाथ का हाथ था। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में गोपाल टंडन को टिकट मिला लेकिन वह भी चुनाव हार गए। इस हार का दोष दिया गया राजनाथ को। ऐसे में राजनाथसिंह ने वक़्त के मिजाज को समझते हुए भाजपा की स्टेट यूनिट को पीछे करके और अपने परिवार को आगे कर दिया, लेकिन विरोधी खेमा तो यही मुद्दा ढूंढ रहा था और उसको मुंह मांगी मुराद मिल गई।

लालजी टंडन और उनके बेटे गोपाल दोनों ही राजनाथ की मदद करते नज़र आते हैं किन्तु राजनाथ के बेटे पंकजसिंह और कुछ अन्य ठाकुर भी चुनावी रणनीति बनाने में सक्रिय हैं। लखनऊ के मौजूदा विधायकों में तीन ब्राह्मण हैं और लोकसभा के तीन प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी, अभिषेक मिश्रा एवं नकुल दुबे भी ब्राह्मण हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा के बाद राजनाथ प्रदेश के दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री हैं जो लखनऊ से सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। लखनऊ के 18 लाख मतदाताओं में ब्राह्मणों की संख्या 15-20 प्रतिशत है और 60 हज़ार से 65 हज़ार राजपूत हैं, जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या 25-27 प्रतिशत है और फिलहाल यही समीकरण देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा की प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे राजनाथ की डगर फ़िलहाल कठिन है।

वेबदुनिया पर पढ़ें