श्रीराम और परशुराम

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परशुराम ने ही की थी राम राज्य स्थापना की भूमिका

कुछ प्रसिद्ध रामायण वक्ताओं के मुख से कई बार यह सुनाई देता है कि परशुराम क्रोधी थे, जनकपुर में धनुष भंजन के बाद जब वह यज्ञ शाला में पहुंचे तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। लक्ष्मण ने उन्हें खूब छकाया, जब भगवान श्रीराम ने उनके धनुष में तीर का संधान किया तो राम के सम्मुख नतमस्तक होकर चले गए आदि-आदि।

परशुराम दशावतारों में हैं। क्या उन्हें इतना भी आभास नहीं होगा कि यह धनुष किसने तोड़ा? क्या वह साधारण पुरुष हैं?

श्रीराम द्वारा धनुष तोड़ने के बाद समस्त राजाओं की दुरभिसंधि हुई कि श्रीराम ने धनुष तो तोड़ लिया है, लेकिन इन्हें सीता स्वयंवर से रोकना होगा। वे अतः अपनी-अपनी सेनाओं की टुकड़ियों के साथ धनुष यज्ञ में आए समस्त राजा एकजुट होकर श्रीराम से युद्ध के लिए कमर कस कर तैयार हो गए।

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धनुष यज्ञ गृह युद्ध में बदलने वाला था, ऐसी विकट स्थिति में वहां अपना फरसा लहराते हुए परशुराम जी प्रकट हो गए। वे राजा जनक से पूछते हैं कि तुरंत बताओ कि यह शिव धनुष किसने तोड़ा है, अन्यथा जितने राजा यहां बैठे हैं.... मैं क्रमशः उन्हें अपने परशु की भेंट चढ़ाता हूं।

तब श्रीराम विनम्र भाव से कहते हैं- हे नाथ शंकर के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही दास होगा। परशुराम-राम संवाद के बीच में ही लक्ष्मण उत्तेजित हो उठे, विकट लीला प्रारंभ हो गई। संवाद चलते रहे लीला आगे बढ़ती रही परशुराम जी ने श्रीराम से कहा अच्छा मेरे विष्णु धनुष में तीर चढ़ाओ... तीर चढ़ गया, परशुराम जी ने प्रणाम किया और कहा मेरा कार्य अब पूरा हुआ, आगे का कार्य करने के लिए श्रीराम आप आ गए हैं। गृह युद्ध टल गया।

सारे राजाओं ने श्रीराम को अपना सम्राट मान लिया, भेंट पूजा की एवं अपनी-अपनी राजधानी लौट गए। श्रीराम के केंद्रीय शासन नियमों से धर्मयुक्त राज्य करने लगे। देश में शांति छाने लगी अब श्रीराम निश्चिंत थे क्योंकि उन्हें तो देश की सीमाओं के पार से संचालित आतंक के खिलाफ लड़ना था, इसीलिए अयोध्या आते ही वन को चले गए।

पंचवटी में लीला रची गई, लंका कूच हुआ। रावण का कुशासन समाप्त हुआ, राम राज्य की स्थापना हुई। अतः राम राज्य की स्थापना की भूमिका तैयार करने वाले भगवान परशुराम ही थे।

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