-कमल शर्मा शेयर बाजार में आई गिरावट के लिए हर कोई विदेशी संस्थागत निवेशकों को दोष दे रहा है कि उनकी बिकवाली ने शेयर बाजार को तोड़ दिया। लेकिन क्या विदेशी संस्थागत निवेशकों को शेयर बेचने का अधिकार नहीं है, या उन्हें हमने यहाँ केवल शेयर खरीदने के लिए ही बुलाया है कि आप केवल शेयर खरीदें और बेचेंगे हम ही।
जब शेयर बाजार ऑल टाइम हाई हो गया था तो क्यों घरेलू निवेशक यह सोचकर रुक गए कि बाजार तो अभी और फलेगा, फूलेगा...िफर शेयर बेचेंगे। हम पहले भी कहते रहे हैं कि जो मुनाफा आज आपकी जेब में है, वह कल किसी और की जेब में जा सकता है। इस समय असल में यही हो रहा है कि जो मुनाफा कल आपकी जेब के हवाले हो सकता था आज विदेशी संस्थागत निवेशकों के बैंक खाते में पहुँच गया है।
जब एक छोटे निवेशक को अपने शेयर बेचने का अधिकार है तो बड़े निवेशक को भी अपने शेयर बेचने का अधिकार है। यह अलग बात है कि छोटे निवेशक के पास किसी कंपनी के सौ से कुछ हजार शेयर होंगे, जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास एक एक कंपनी के लाखों शेयर होते हैं। जब कोई छोटा निवेशक शेयर बेचता या खरीदता है तो वह अपने स्तर के निवेशकों या सलाहकारों की राय से भी कारोबार में मदद पाता है।
अब यही समूह शेयर बेचने का मानस बना ले तो किसी कंपनी के कितने शेयर बेच पाएँगे। महज कुछ हजार....लेकिन विदेशी संस्थागत जो आपस में मित्र भी हो सकते हैं और बेचने का मानस तय कर लें तो स्वाभाविक हैं कि जिसमें बिकवाली करेंगे उस कंपनी के शेयर को बुरी तरह टूटने से बचा पाना मुश्किल है। जैसे एक आम निवेशक अपने निवेश पर मुनाफा कमाना चाहता है कि वैसा ही संस्थागत निवेशक चाहते हैं। इन निवेशकों को भी अपने यहाँ निवेश करने वालों को लाभांश देना होता है और कंपनी के आकार को बढ़ाना होता है।
लोग कहते हैं कि ये विदेशी हमें डुबा देंगे...सही कह रहे हैं ऐसे लोग भी, लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों को यहाँ लाया कौन और किसने उन्हें कारोबार की अनुमति दी। क्या वे जबरन घुसे....हाँ जो ऐसे निवेशक सेबी के पास बगैर रजिस्ट्रेशन के कारोबार कर रहे हैं, उनके खिलाफ जमकर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जिन्होंने सारी औपचारिकताएँ पूरी की और बाजार को खोलने की प्रक्रिया के तहत भारत आने दिया गया उनका कोई कसूर नहीं है। यदि आपको बाजार में कारोबार करने का तरीका नहीं आता है तो उसके लिए दूसरे को दोष देने का अधिकार किसी के पास नहीं है।
खुले बाजार का सीधा सिद्धांत है या तो कारोबार करने का तरीका जानो अन्यथा हट जाओ। आपके पास सही समय पर सूचनाएँ नहीं आती तो यह आपकी कमी है। जो लोग तेजी से सूचनाएँ बटोरते हैं, वे ही मौजूदा बाजार में टिक सकते हैं। हम ऐसे कई निवेशकों को जानते हैं कि जो रोजाना दो से चार रुपए का एक आर्थिक अखबार तक नहीं खरीदते। जो निवेशक एक अखबार तक नहीं पढ़ते उनसे आप देश विदेश के अखबार और पत्रिकाएँ पढ़ने या इंटरनेट पर जानकारियाँ लेने की उम्मीद छोड़ दीजिए।
शेयर बाजार में कमाई कोई रसगुल्ला नहीं है कि बाजार गए और मुँह में लपक लिया। यहाँ भी दूसरे कारोबार की तरह मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन यह मेहनत ज्ञान आधारित है। मैं अपने एक मित्र को जानता हूँ जो देर रात पढ़ाई करते हैं और सुबह जल्दी उठकर इंटरनेट पर सारे अखबार और सूचनाएँ पढ़ चुके होते हैं। दिन-रात फोन पर जगह-जगह से सूचनाएँ लेते रहते हैं।
मेरे इन मित्र को शेयर बाजार में कोई नुकसान नहीं हुआ, जबकि वे इससे तकरीबन 20 साल से जुड़े हुए हैं। अधिकतर निवेशक यह तक नहीं जानते कि एक शेयरधारी होने के नाते उनके पास कानूनी तौर पर कंपनी में क्या क्या अधिकार मिले हुए हैं।
ज्यादातर निवेशक जिस कंपनी में पैसा लगाते हैं, उन्हें यही नहीं पता कि यह कंपनी करती क्या है, इसका ट्रेक रिकॉर्ड कैसा है, कौन चेयरमैन और निदेशक हैं...इन सब को भी छोडि़ए, यह तक नहीं पता रहता कि इस कंपनी का रजिस्टर्ड कार्यालय कहाँ है और इसके कार्य परिणाम कब आएँगे। ऐसे महान निवेशकों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
इन निवेशकों के हाथ में अखबार दे दीजिए तो यह नहीं देख पाते कि जिस कंपनी में उन्होंने निवेश किया है, उसके बारे में आज किस पेज पर क्या खबर छपी है। मैं सैंकड़ों कंपनियों की सालाना आमसभा यानी एजीएम में गया हूँ, वहाँ अलग ही नजारा देखने को मिलता है कि बाहर लोग कंपनी के कर्मचारियों से इसलिए लड़ रहे है कि उन्हें चाय, कोल्ड ड्रिंक और नाश्ते के फ्री कूपन नहीं मिले। ऐसे निवेशक कूपन के लिए लड़ रहे हैं और भले ही अंदर जहाँ एजीएम चल रही हैं, कंपनी के निदेशक कंपनी को बेच डालें या मनमाने प्रस्ताव पास करा लें।
कंपनी के निदेशक क्या करना चाहते हैं इससे कोई मतलब नहीं, बस फ्री में नाशता मिल जाए, यह जरूर है बाकी कंपनी गई भाड़ में। कंपनी चेयरमैन की स्पीच और कुछ निवेशकों के उठे सवालों पर दिए जवाब से जिन निवेशकों को कोई मतलब नहीं है, उन्हें बाजार को कोसने का भी अधिकार नहीं है। बस ऐसे निवेशकों को छेड़ दो तो कहेंगे, अरे जो अंदर बैठे हैं, उन्हें जो करना है वे उसे तय करके आए हैं।
लेकिन हम कहते हैं कि आप अपनी बात तो उठाइए, कंपनी के निदेशक कैसे मनमानी कर लेंगे? इस समय ढेरों कंपनियों के प्रमोटर अपना हिस्सा बेच रहे हैं क्योंकि बाजार में खूब तेजी है और ये प्रमोटर अगर अपनी सारी हिस्सेदारी बेचकर कंपनी से बाहर निकल जाएँ तो भी ऐसे निवेशकों को कोई मतलब नहीं है कि कंपनी का क्या होगा।
इस समय लोगों को ध्यान यहाँ गया ही नहीं कि हर रोज ढेरों कंपनियों के प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं और सरकार, सेबी, शेयर बाजार अथॉरिटी एवं निवेशक चुपचाप बैठे हुए हैं। क्यों बेच रहे हैं अपनी हिस्सेदारी, किसी ने हिसाब पूछा। किसी ने सेबी से पूछा कि 'पी नोट' का मामला कितने साल से चल रहा है और अब तक चुपचाप क्यों बैठे थे।
यदि पहले भी यह मामला उठा था तो उस समय क्यों नहीं कोई कानून कायदा बनाया गया और अब जब जमकर तेजी आई तो कानून की बात होने लगी। भारतीय रिजर्व बैंक तो पहले ही सेबी को कह रहा था पी नोट के बारे में तो सेबी व सरकार अब तक क्यों सोई रही। शेयर बाजार में यह अफवाह भी थी कि एक केंद्रीय मंत्री का बेटा शेयर बाजार में फँसा हुआ है और उसे उबारने के लिए यह पी नोट का मसला सामने आया और उसके निकलने पर पी नोट का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
पूछी यह बात किसी ने सरकार से? जब तक निवेशक नहीं जागेंगे, कुछ नहीं हो सकता। तो जागो निवेशकों, नहीं तो आपको चूना लगना तय है। (साभार वाह मनी)