ग़ज़लें : हसरत मोहानी (मौलाना सैयद फ़ज़ल हसन)

गुरुवार, 1 मई 2008 (15:25 IST)
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हम उन्हें यूँ हाल दिल का सुनाने में लगे है
कुछ कहते नहीं पाँव दबाने में लगे है

और ऐसे कहाँ हैरत ओ हसरत के मुरक़्क़
ऐ दिल जो तेरे आईनाख़ाने में लगे है

कहना है उन्हें ये के न हम होंगे मुख़ाति
पर कहते नहीं ज़ुल्फ़ बनाने में लगे है

क़ातिल तेरे दामन पे मेरे ख़ून के धब्बे
कुछ और भी ख़ंजर से छुड़ाने में लगे है

हर दम है ये डर फिर न बिगड़ जाए वो हसर
पेहरों जिन्हें रो रो के मनाने में लगे हैं।

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