बुधवार, 9 अप्रैल 2008 (12:27 IST)
घर की चिंता करते हैं दफ्तर में भी संसारी लोग।
बात के कितने हलके हैं ये पत्थर से भी भारी लोग॥
एक अभागिन सोच रही है, तन्हाई के मंदिर में।
लूट ले जो नारी की इज्जत कैसे हैं वह पुजारी लोग॥
सोने में जो पीतल बेचें, दूध में पानी शीतल तक।
या अल्लाह ये मेरी दुनिया, और ऐसे ब्योपारी लोग॥
सारे समाज का खून पिये हैं, लाखों की हेराफेरी।
फिर भी भूखे-प्यासे लगे हैं, राज भ्रष्टाचारी लोग॥
भेद न न भाव जहाँ हो कोई, और न कोई वाद विवाद।
मन की ऐसी ही बस्ती में जागें बारी-बारी लोग॥
लोग हैं कुछ जो सींच रहे हैं अपने लहू से फुलवारी।
और कुछ हैं जो बेच रहे हैं, रंग भरी फुलवारी लोग॥
दो दिन के संसार में जाकिर क्या लेना क्या देना है।
रात कटे तो सुबह सवेरे चल देंगे बंजारी लोग॥